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नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने ।
(इल्म= विद्या; साग़र= पैमाना)
अंतरा-१.
इस जिगर का लहू शायद, कम पड़ा होगा, तभी तो..!
इन्तक़ाम की आग को ही, पी लिया है उसने..!
नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
अंतरा-२.
दूर तक उसकी ख़ुशबू, अब भी फैलती होगी, मगर..!
उसे मरकज़ में दम तोड़ना, सीखा दिया है उसने..!
नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
(मरकज़= बीचों-बीच)
अंतरा-३.
नफ़रति मज़हब से उसे, ऐसी मुहब्बत हुई कि..!
मुहब्बत में रोज़ा -ए- नफ्स, रख लिया है उसने ।
नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
(नफ़रति मज़हब = नफ़रत का धरम; रोज़ा-ए-नफ्स= मन के तीन व्रत= कम खाना, कम सोना और
कम बोलना )
अंतरा-४.
रूखे - रूखे से सरकार ?अच्छा नहीं लगता हमें..!
मगर, चुपके से प्यार करना, सीख लिया है हमने..!
नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
मार्कण्ड दवे । दिनांकः २६-०९-२०१२.
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