Friday, July 1, 2011

पावली की पदोन्नति । Part- 2.


पावली की पदोन्नति । 
Part- 2.
सौजन्य-गूगल ।

प्यारे दोस्तों, पार्ट-१ में आपने पढ़ा था..!!

" अ..हा..हा..हा..!! सन-१९६० में, एक दिन रास्ते पर किसी की खोई हुए, एक चवन्नी मुझे अनायास मिल गई और सभी घरवालों से छिपा कर, उस चवन्नी से, मैंने चार दिन तक, जो जल्से किए थे..!! अ..हा..हा..हा..!! आज भी उसे, याद कर के मेरा दिल गदगद हो उठता है..!!"

अब आगे पार्ट-२..!!

सन-१९६० की साल में, हमारे गाँव में, हमारी जाति के व्यापारी के अलावा, किसी दूसरे की दुकान से तैयार खाद्य सामग्री मँगवाना, हमारे परिवार में वर्ज्य था । इसे आप उस ज़माने की रूढिचूस्तता भी मान सकते हैं । 

ऐसे में , चार दिनों तक रास्ते से, मुफ़्त में मिली हुई, चवन्नी का छूटा करा कर चार दिन तक, एक-एक, दो-दो  पैसा खर्च करके, उस ज़माने के,`जंगली-हूण-अनार्य` लोगों की ख़ूराक माने गये खाद्य पदार्थ, जैसे कि, पाँव भाजी वाले  मीठे पाँव-बिस्किट-नानखटाई-चॉकलेट-जिनतान कंपनी की छोटी-छोटी मीठी  गोली  इत्यादि, ज़िंदगी में पहली बार चूपके से, बड़े ही चाव से चखे थे । 

मैं अगर सच कहूँ तो, उन चीज़ों का स्वाद, मेरे  दिल में कुछ इस हद तक,  घर कर गया है कि, स्वाद आज भी  वैसे  का  वैसा ही है..!! ठीक है, अपने खुद की मेहनत के कमाये रूपये से, ये सभी चीज़ें आज कल खा-पी रहे हैं, पर वह फूकट की चवन्नी जैसा स्वाद अब उनमें  कहाँ..!!

मेरा एक दोस्त, स्वर्ण कार का लड़का भी था । उसके पिता को मैं अक्सर पागल मानता था क्योंकि, इतनी मूल्यवान चवन्नीयों को, किसी धातु की पट्टी पर टांका लगाकर, लड़कियों के  सिर के बाल बाँधने के लिए वह बक्कल बनाते थे..!! 

शायद उनको पता न था कि, इतनी सारी चवन्नीयों से, कितने सारे मीठे पाँव-बिस्किट-नानखटाई-चॉकलेट-जिनतान कंपनी की छोटी-छोटी मीठी  गोली  इत्यादि, खरीदे जा सकते थे?

हमें पाठशाला में, प्रारंभिक कक्षा की किताबों में पढ़ाया गया है कि, " किसान जगत का तात कहलाता है ।" पर, इस निकम्मी सरकार ने, सभी के परम पूज्य पिता  श्री किसान जी को पूछे बिना ही, चवन्नी रद्द कर दी? अब किसान उनके खेत में, `चार आना या सोलह आना`, कितने आना फ़सल पैदा हुई, ये कैसे बता पायेंगे?

चवन्नी रद्द होने से,एक और कठिनाई पैदा हुई है?समाज में जिन लोगों का, शारीरिक हिलना-डुलना शंकास्पद है, (गॅ टाइप?) उनके कई  उप-नामों  में  से,  एक  लोकप्रिय उप-नाम `चवन्नी छाप`को, उनकी सहमति लिए बिना, सूची से कम  कर देना, शर्मा जी के मत अनुसार ठीक बात नहीं है? 

हालाँकि, उस  वक़्त उम्र में, मैं  बिलकुल छोटा होने के कारण,` पावली छाप` उप-नाम का भावार्थ मेरी समझ से परे था..!! पर, एक दिन ऐसा वाक़या हुआ कि, मेरी समझ में कुछ-कुछ भावार्थ, अपने आप आ गया । 

हुआ यूँ  कि, हमारी गली में, खाते-पीते घर का, पहलवान टाइप का, करीब पंद्रह साल का, एक  लड़का, उसके  कुछ दोस्तों के साथ, गली  में  क्रिकट खेल रहा था । उसने  हमें  डरा  कर, वहाँ से  भगाने  के  लिए, हमारी नन्ही वानर सेना में से, एक बच्चे को, धक्का दे कर ज़मीन पर गिरा दिया । 

पता नहीं, हमारी वानर सेना में, कैसे और कहाँ से, एकाएक  इतनी  ताक़त आ गई कि, सभी बच्चों ने मिलकर, उस पहलवान लड़के की टाँग खींच कर, उसे भी ज़मीन पर गिरा दिया और सब ने मिल कर उसे थोड़ा पिटा भी..!!

वैसे, उस लड़के की, ये पिटाई कांड के बाद, सभी बच्चों को डर लगा, अब ज़मीन से उठ कर, कहीं ये पहलवान, हम सब बच्चों की धुलाई शुरू न कर दें..!! 

पर हमारे आश्चर्य के बीच, हम से कई गुना बलवान, वो पहलवान ज़मीन पर लेटे-लेटे, रोते-रोते, उसकी मम्मी को, ज़ोर से आवाज़ दे कर सहायता के लिए बुलाने लगा..!! 

उस दिन से इस पहलवान को पछाड़ने का, गौरव महसूस करते हुए, सारे बच्चे, उस पहलवान को, `पावली-पावली` कहकर बुलाने लगे और मेरी समझ में कुछ-कुछ आ गया कि,जो बिना वजह किसी से भीड़ जाते हैं और फिर किसी के धक्का देने पर, ज़मीन पर गिर कर, रोते-बिलखते,सहायता के लिए अपनी मम्मी को बुलाते हैं, वे सब `पावली छाप` कहलाते होंगे?

मेरी समझ में यह भी आ गया कि, अपने दुश्मन को निर्बल समझ कर, अपनी क्षमता पर अति आत्मविश्वास जता कर जो लोग, बिना सोचे-समझे, किसी से भीड़ जाते हैं, वे सारे ज़मीन पर औंधे मुँह गिरते हैं और उन्हें अपनी, मम्मी-पापा-नानी याद आ जाते हैं..!! 

उस दिन के बाद, मैं तो कभी, किसी से आजतक भीड़ा नहीं  हूँ..!! 

पर हाँ, बिना सोचे-समझे, बाबा रामदेवजी सरकार से भीड़ गये? 

हाँ, भीड़ गये..!! 

बाबा जी के समर्थकों को आधी रात में खदेड़ने के कारण, सरकार  जनता से भीड़ गई?

 हाँ, बूरी तरह भीड़ गई..!!

अब, सोलह अगस्त से, जंतर-मंतर पर,आमरण अनशन पर  बैठ कर श्रीअण्णा हज़ारे जी, सरकार से भीड़ने वाले हैं? 

शायद..हाँ..,अब आगे-आगे देखिए होता है क्या? 

वैसे, हमारे शर्मा जी आज आध्यात्मिक प्रति भाव देने के मूड में है और मुझे अभी-अभी समझा रहे हैं कि," इन सारी बातों पर, आप क्यों व्यर्थ में, अपना खून जला रहे हैं, जो भीड़ता है, उन्हें भीड़ने दो ना? 

ये सब पहले से तय होता है । हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ है, जिनकी डोर उपर वाले के हाथ में हैं..!! 

और रही चवन्नी रद्द होने का मातम मनाने की? 

तो ये समझो कि, जिस प्रकार, हम अलग-अलग शरीर रूप धारण करते हैं मगर, सभी प्राणी में आत्मा एक ही है, उसी प्रकार, सिक्के का नाम, चवन्नी हो, अठन्नी हो या रुपया हो, क्या फर्क पड़ता है..!! उन सभी सिक्कों में  धातु  तो  एक जैसी  ही  है  ना? और फिर कोई इस दुनिया से चला जाता है, पर वह, अपने अच्छे-बूरे कर्मों से, हमेशा सब के दिल में बसा रहता है कि नहीं..!!

सच तो ये है कि,पावली कभी मरती नही, पावली मर सकती ही नहीं, बहुत जल्द ही, दूसरा रूप धारण करके, पावली हमारे दिल में...सॉरी जेब में, एक ना एक दिन जरूर वापस आएगी..उसके जाने का मातम मनाना, अच्छी बात नहीं है..!!"

वाह, शर्मा जी,वा..ह..!! 

या...र...!! शर्मा जी की बात तो पते की है..!! है कि नहीं? आपको क्या लगता है? 

ताज़ा नोट- अभी-अभी मुझे पता चला है कि, इतना फ़ालतू आलेख लिखते-लिखते, मेरे दिमाग से मेरी, एक चवन्नी कहीं खो गई है, आप उसे ढूंढने में सहायता करेंगे, प्ली..ज़..!! धन्यवाद ।

इति श्री भरत खंडे, पावली पुराण,अंतिम अध्याय संपूर्णम् ॥ 

सब मिल, बोलो जय श्री,`जय-जय पावली परमात्मन्..!! जय-जय हिन्दुस्तान..!! मेरा भारत महान?`

मार्क्ण्ड दवे । दिनांक-०१-०७-२०११.

2 comments:

  1. आदरणीय मार्क़ंड सर। "पावली की पदोन्नति पढकर खूब मज़ा आया।पहली बार आपके ब्लोग पर आई। बढिया लेख।

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  2. भारतियों में 'सवा रूपये' के प्रसाद की कु-प्रथा को बंद करने के लिए इटली से फरमान जारी हुआ है,ऐसा
    सुना है हमने तो दवे जी.

    आप चिंता न करें,आपकी यादों से चव्वनी कहाँ जायेगी?
    बहुत मजे उडाये हैं आपने.

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