Thursday, December 1, 2011

गुपचुप ही सही..!! (गीत)




गुपचुप ही सही..!! (गीत)




गुपचुप  ही  सही  मुलाक़ात  करो ।

यूँ   चुप  न  रहो  कोई  बात   करो ।

निगाहें - करम  शफ़क़त  कर  दो ।

तेरे   नूर   की   ये  बरसात  करो ।

( शफ़क़त = मेहरबानी)


अंतरा-१.


जीना     नहीं     है    आसान   इतना ।

ख़फ़ा  भी   तो   है,  ये  जहाँ  कितना..!!

तुम   कहो  तो,  मैं   सब   कुछ   झेलूँ ।

मेरे     नाम     कोई    जज़बात   करो ।

यूँ    चुप   न   रहो   कोई  बात   करो ।


अंतरा-२.


बदला   है   समाँ,  हुई   तेज़  धड़कन ।

अब   कहाँ   रहा,  रस्मों   का   चलन ।

कुछ  तुम  कहो तो, कुछ  मैं  भी  कहुँ ।

अपने   दिल   की   कोई   बात  कहो ।

यूँ    चुप    न   रहो  कोई  बात  करो ।


अंतरा-३.


तेरी   चाहत    पर    मैं    लूट  गया ।

लो, वफ़ा  के  नाम  पर  झूक  गया ।

गर  कहो   तो, ज़ख़्मे-जिगर  चूमूँ ?

ग़म     भूलने    के,  लम्हात  करो ।

यूँ   चुप   न  रहो  कोई  बात  करो ।


अंतरा-४.


बिक  गया  नसीब, ये  फ़क़ीरी  में..!!

बदनाम    भी   हुआ   बदहाली   में..!!

लो, फिर  हारा  तुम  से,  बाज़ी   मैं  ।

अब   जीत  की  ख़ुशी  ख़ैरात  करो ।

यूँ   चुप   न   रहो  कोई  बात  करो ।


गुपचुप  ही  सही  मुलाक़ात  करो ।
यूँ   चुप  न  रहो  कोई  बात   करो ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक-०१-१२-२०११.

2 comments:

  1. आज आपकी यह पोस्ट पढ़कर नाजने क्यूँ यह गीत याद आया
    चुप तुम रहो,चुप हम रहें
    खामोशी को खमओशी से बातें करने दो ....
    बरहाल बहुत अच्छा लिखा है आपने शुभकामनायें
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका भी स्वागत है

    ReplyDelete
  2. अब जीत की ख़ुशी ख़ैरात करो ।
    यूँ चुप न रहो कोई बात करो ।

    वाह! आपकी बात ने तो खुशी की बरसात ही कर दी है जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

    ReplyDelete

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