आतंकवादी हाय-कु-कथा?
सौजन्य-गूगल
१.
सुबह पूरे
थे पापा; शाम लौटे
हैं टुकड़ों में..!!
२.
छिपे हो खुद,
कमांडो के पिछे यूँ?
बहुत अच्छे..!!
३.
ऐ सियासत
क्या चाहिए और भी,
जान के सिवा?
४.
मरी है आज,
इन्सानियत एक
ही, धमाके में?
५.
दिल का कोना
हुआ लहूलूहान,
रोता भी नहीं..!!
६.
मुंबई-कर,
कभी सोता नही है,
लाश बन के..!!
७.
उठेगी आंधी,
कभी तो ढेर होगा,
आतंकवाद?
मार्कण्ड दवे । दिनांक-१५-०७-२०११.
सीधी दिल पे चोट देने वाली पर ऐसा भी नही केह सकते के क्या खुब कही!
ReplyDeleteRajul Shah
http://www.rajul54.wordpress.com
आपने लिखा क्या खूब
ReplyDeleteदिल में दर्द होने लगा
आपकी,हाय कु-कथा दिल की व्यथा को
व्यक्त कर रही है.
बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन अपेक्षित हैं.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteगजब... अद्भुत, गागर में सागर ला दिया है आपने. हायकुओं ने आम मन की व्यथा को भली प्रकार प्रतिबिंबित किया है...
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