Monday, May 9, 2011

घर मंदिर । (नीति कथा)

घर मंदिर । (नीति कथा) 
(सौजन्य-गूगल)
    
"विश्वास अगर जीत पाए श्रद्धा को,
  ईश्वर    भी   बाअदब   झुकता  है, 

  भक्त   से    गले     मिलने   को..!!"

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प्यारे दोस्तों,


आपके जीवन में कभी न कभी तो ऐसा अनुभव ज़रूर हुआ होगा कि, आप कभी अपनी सही राह भट़क कर, जीवन में चारों ओर से असहायता और हताशा महसूस कर रहे हों, इतने में ही कहींसे, आपकी कल्पना से परे, कोई अदृश्य, रहस्मयी, अलौकिक ईश्वरीय मदद आपको मिले और आपकी समस्या का समाधान चुटकीयों  में होते ही, आपकी  इज़्ज़त-आबरू सँभल जाएं?

ऐसे में स्वाभाविक है कि, आप के मन से चिंता का भारी पहाड़ तुरंत हट जाए..!!

हालाँकि, ये बात अलग है कि, कई लोग ऐसी अदृश्य,रहस्यमयी, अलौकिक ईश्वरीय मदद को जीवन का आकस्मिक घटनाक्रम मान कर, इसका सही आकलन करने से परहेज करते हैं? 

अगर हर एक के जीवन में घटती रहती ऐसी घटनाओं का सही तरीके से, हर बार पोस्टमार्टम किया जाए तो, कुछ समय पश्चात ऐसी अदृश्य,रहस्यमयी,अलौकिक ईश्वरीय शक्ति पर श्रद्धा बढ़ने के कारण, ईश्वर पर विश्वास दृढ़ होता है और ऐसे अनुभव बार बार होने पर, इन्सान के जीवन से मानसिक तनाव का नामोनिशान मिट जाता  है ।

 ऐसा ही एक वाक़या मेरी उपस्थिति में,सन-१९५९ में(५२ साल पहले) घटा था । आज मैं  उसी घटना का बयान कर रहा हूँ, जिसके कारण, जीवन के प्रति देखने का, मेरा समूचा नज़रिया ही, सकारात्मक भाव जगत में बदल गया ।


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God's Palace


घर मंदिर- भगवान का महल ।


" मनजीभाई,आप मंदिर का काम शुरू कर दीजिए, घर मंदिर का काम पूरा होने पर, मैं आपको पूरा मेहनताना चुकाऊंगा तो चलेगा ना? ये रहा घर मंदिर का नक़्शा ।" 

ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा रखने वाले और सरकारी पाठशाला में बरसों तक, प्रामाणिकता और पूर्ण निष्ठा के साथ, छात्र एवं अभिभावकों की सेवा करके, अभी अभी निवृत्त हुए, आचार्य श्रीकेशवजी ने, पत्थर पर नक़्क़ाशी काम करने वाले,  नक़्क़ाशीदार-कलाकार श्रीमनजीभाई को, प्रेम से गुज़ारिश की ।

"अरे..!! ये क्या कहा आपने मास्टर साहब? आपके पैसे मानो बैंक में ही पड़े हैं, मैं आपके नक्शे के मुताबिक घर मंदिर तैयार कर दूँगा और आपको मेरा काम पसंद आए तो ही, आप मुझे पैसा देना, वर्ना मुझे एक भी रुपया नहीं चाहिए ।" इतना कह कर, कलाकार मनजीभाई जल-पान करके,`जयश्री कृष्ण` कह कर,दूसरे दिन से काम शुरू करने का वादा करके,  वहाँ से विदा हुए ।

सच्चे हृदय से छलकते प्रेम और ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा को मन में संजो कर, दूसरे ही दिन से, छोटे-लंबे पत्थर, लोहे के पतले गर्डर और अपनी कला के सारे औज़ार के साथ, बेनमून कलाकार श्रीमनजी मिस्त्री ने अपनी कला के जौहर दिखाना शुरू कर दिया । बारीक़ खुदाई से शोभित छोटे छोटे पतले स्तम्भ, कलात्मक चाप (Arch), अर्ध गोलाई वाला शिखर का कच्चा नमुना तैयार हुआ तभी, देखने वाले सभी के हृदय "शाबाश कलाकार शाबाश` कहने लगे..!!


पंद्रह दिन में ही,आचार्य साहब के घर के अंदर, पूर्व दिशा में, एक दीवार पर, घर मंदिर के  तैयार किए गए सारे हिस्सों को,कलाकार मनजीभाई ने,जब एक दूसरे से जोड़े, तब घर मंदिर का कार्य संपूर्ण न होते हुए भी, मंदिर बहुत सुंदर लग रहा था ।


घर मंदिर के ढांचे को निहार कर, आचार्य केशवजी ने  अत्यंत प्रसन्न होकर, कलाकार मनजी मिस्त्री की पीठ थपथपाकर, उन्हें शाबाशी देते हुए कहा भी कि," वाह, मनजीभाई, आखिर भगवान का महल तैयार हो ही गया और ये तो किसी राजा के महल से भी सुंदर लग रहा है..!! आप की ऊँगलियों में क्या जादू है?"

और पंद्रह दिन बीत गए, मंदिर का परिष्करण कार्य चलता रहा । भगवान बाल ठाकुरजी के लिए मार्बल का छोटा सिंहासन, पानी की छोटी सी झारी(kettle-like vessel) के लिए अलग जगह, पूजा थाल-आरती- दीपक इत्यादि के लिए सुविधा वगैरह..वगैरह..!!

आखिर करीब एक माह की कड़ी  मेहनत के बाद, आज भगवान का घर मंदिर..ओह..सॉरी..भगवान के महल का निर्माण कार्य संपन्न हो ही गया..!! बिजली के, १०० वॉट के बल्ब से चमकता प्रकाश, घर मंदिर में फैल गया । इसी के साथ, उत्कृष्ट कलाकार मनजीभाई की नज़र में, अपना कार्य सच्चे मन से करने के संतोष की, तेज़ चमक भी फैल गई ।

घर मंदिर का पारिश्रमिक दो दिन बाद लेने के लिए आने को कह कर, मनजीभाई ने, आचार्य साहब से  विदा ली, तब  श्रीकेशवजी के परिवार के उपस्थित सारे सदस्यों को, इस बात से बड़ी हैरानी हुई कि, केशवजी मास्टर साहब ने, मनजीभाई मिस्त्री से, उनके पारिश्रमिक की रकम के बारे में न कोई बात की, ना मनजीभाई ने अपने मेहनताने की रकम का कोई खुलासा किया..!!


आज सुबह से मास्टर साहब की धर्म पत्नी चिंतामग्न थीं । आज घर मंदिर निर्माण का मेहनताना (बील) लेने के लिए मनजीभाई मिस्त्री आने वाले थे और घर में सिर्फ दो रूपये ही पड़े थे ।(ये सन-१९५९ की बात है ।) मेहनताना चुकाने की जितनी चिंता आचार्यजी की पत्नी को थी उससे बिलकुल विपरीत, फ़क़ीर जैसे स्वभाव वाले मास्टर साहब, बगैर कोई चिंता के, भगवान बाल ठाकुर को, उनके महल में, श्रद्धापूर्वक, धूमधाम से प्रवेश कराने की तैयारी में पड़े थे ।


मास्टरजी की पत्नी की चिंता भी बिलकुल समुचित थी । निवृत्ति वय होने के कारण, अभी अभी रिटायर्ड हुए आचार्य केशवजी मास्टर को, अपना पेंशन हक़ पाने के लिए, सरकारी कचहरी के चक्कर काटने शुरू हो गए थे ।

वैसे तो, उन कचहरी में,केशवजी मास्टर के हाथों, प्रामाणिकता और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा पा चुके कई छात्र नौकरी कर रहे थे, फिर भी अपने ही प्रातःस्मरणीय गुरूजी की पेंशन की फाइल मंज़ूर करने के लिए, गुरूजी के  उन आज्ञांकित शिष्यों  को, `शिष्यदक्षिणा` के रूप में, शायद कुछ रिश्वत की आशा होगी?

अब ऐसे सरकारी तुमारशाही में मास्टरजी का पेंशन शुरू होने में कितने साल लगेंगे, ये बात तो सिर्फ ईश्वर ही जानता होगा..!!

हालाँकि, ईश्वर तो सब कुछ जानता ही था, इसीलिए सुबह ११.०० बजे जब, कुशल कलाकार मिस्त्री मनजीभाई, अपने अस्पष्ट अक्षर में लिखा हुआ, मेहनताना का बील ले कर आ पहुँचे और मास्टर केशवजी के हाथ में रख दिया तब  केशवजी मास्टर साहब ने, वह मुड़े हुए कागज़ को खोले बिना या उसमें लिखी रकम को देखे बिना, घर मंदिर में बिराजमान भगवान बाल ठाकुर के चरणों में, बील का कागज़ रख दिया और  पत्नी को मनजीभाई के लिए चाय पानी का बंदोबस्त करने के लिए आवाज़ दी ।

मास्टर साहब की पत्नी ने चाय को चूल्हे पर उबालने के लिए रखी पर, उनको लगा मानो चाय के साथ साथ, बील की रकम जुटाने की चिंता में, उनका खून भी उबल रहा था..!!

चिंताग्रस्त दशा में, मास्टर साहब की पत्नी, मनजीभाई के लिए, जब चाय लेकर रसोई घर से बाहर निकलीं, तब आंगन में डाक वाला राधेश्याम खड़ा था और केशवजी राधेश्याम के पास से, आठ साल पहले किए हुए किसी सरकारी काम के मेहनताने की बाकी रकम के, आज भेजे गए, कुल १२० रूपये का मनीओर्डर छुड़वा रहे थे ।

मास्टरजी ने, डाक वाले राधेश्याम से रूपये १२० लेकर सीधा, मनजीभाई की हथेली पर रख दिया ।

मनजीभाई ने आश्चर्य से मास्टर साहब की ओर देखा और बाद में इतना ही कह पाए कि,

" मेरा बील तो आपने बग़ैर पढ़े ही भगवान के सामने रख दिया था, फिर आपको कैसे पता चला कि, मेरा मेहनताना १२० रुपया हुआ है?

भगवान पर असीम श्रद्धा के कारण, मंद मंद मुस्काते हुए केशवजीने, मनजीभाई को उत्तर दिया,

" मुझे आपके बील की रकम जानने की क्या जरूरत है? जिस भगवान  का आपने महल बनाया है, उसे तो सब कुछ पता है ना?" फिर पत्नी की ओर देख कर केशवजी बोले," अरे..!! राधेश्याम के लिए भी चाय तो ले आना ज़रा?"

ये सुनकर, मनजीभाई मिस्त्रीने ही अपनी चाय में से, आग्रह करके आधा कप चाय, डाक वाले राधेश्याम के हाथ में थमा दी ।

मास्टर साहब की धर्मिष्ठ पत्नी, अब  सारी चिंता त्याग कर ईश्वर की अनहद कृपा भाव का आनंद उठाने लगीं और उन्हें  महसूस हुआ, मानो डाक वाले राधेश्याम के रूप में, स्वयं मुरली मनोहर मनमोहन बाल श्री कृष्ण, सुदामा स्वरूप, मास्टर केशवजी की मदद के लिए आ पहुँचा है और चाय के रूप में, तांदुल स्वीकार कर रहा है..!!

मनजीभाई मिस्त्री के हाथों जब, डाकिये राधेश्याम ने आधी चाय स्वीकार की तब, मनजी मिस्त्री को भी ऐसा लगा जैसे, भगवान का महल निर्माण करने की खुशी में,साक्षात बाल कृष्ण, डाकिये राधेश्याम का रूप धर कर  उनके हाथों से चाय पी कर, उनके प्रति आभार प्रकट करने आ पहुँचे हो..!!

दोस्तों, ये सारी अलौकिक घटना को, कोई नास्तिक या तर्कवादी इन्सान, आकस्मिक मान कर उसे अनदेखी कर सकता हैं, परंतु आप भी अपने जीवन में मुसीबत के वक़्त आपके हित की या अहित की, किसी भी घटना को निष्पक्ष भाव से निहारें और मूल्यांकन करने की आदत डालें, तो एक दिन ऐसा आएगा कि, आपको अपनी सफलता पर ना तो अभिमान  होगा और नाकामी पर आपको ना ही दुःख या चिंता सताएगी..!!

ईश्वर के प्रति पूर्ण शरणागति..यही तो है आनंदमय जीवन का रहस्य..!!

 "सर्व धर्मान् परितज्य मामेकम् शरण्म् व्रजः॥"

आइए, आज से हम भी, अपने जीवन में हर क्षण घटने वाली प्रिय-अप्रिय, किसी भी घटना का तटस्थ भाव से मूल्यांकन करना शुरू कर दें, इस आशा में कि,  हमें कृतार्थ करने और हमारे हाथों से भी आधी चाय पीने, शायद कभी न कभी, कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में, स्वयं नारायण आ जाए..!!

अस्तु,

मार्कण्ड दवे । दिनांक-०८-०५-२०११.

3 comments:

  1. Sunita Sharma said...

    बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है। अगर विश्वास की डोर मजबूत हो ईशवर कही न कही अपनी कसी न किसी रूप में अपने अस्तित्व का दिखा ही देगे बस मन में अटूट श्रद्वा होनी चाहिए।

    9/5/11 11:42 AM

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  2. वन्दना said...

    बिल्कुल मानती हूं इस बात को……………ऐसी शरणागति जिस दिन आ जाती है उसके बाद कोई चिन्ता नही व्यापती……………दिल बाग बाग हो गया।

    9/5/11 1:36 PM

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  3. ईशवर कही न कही अपनी कसी न किसी रूप में है।
    अच्छी पोस्ट .........

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