Friday, June 3, 2011

कैरेक्टर ढीला है? (कहानी)

कैरेक्टर ढीला है? (कहानी)
प्यारे दोस्तों, इस कहानी में एक सती का सतीत्व ख़तरे में हैं,क्या इस लिंक पर आकर, इस कहानी का अंत लिखने में, आप मेरा मार्गदर्शन करने का कष्ट उठायेंगे?  

 
मृगतृष्णा की बैतरनी, मैं तो तैरने चली..!!
मार्ग, पहाड़ के मध्य, मैं  कुरेदने चली..!!


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जेब में सिर्फ सौ रुपये ले कर, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से, आये हुए, एक उत्साही युवक ने जयपुर आकर, अपनी लगन और मेहनत से,एक्स्पोर्ट-इम्पोर्ट के बिज़नेस में, कुछ ऐसे पैर जमाये कि, पांच साल के भीतर-भीतर वह, तगड़ा बैंक बेलेन्स और जयपुर के पोश इलाके में, एक आलीशान बंगले का मालिक बन गया ।

अपनी मीठी ज़ुबान से सभी क्लायन्ट को वश में करके, अपने धंधे का, दिन दोगुना रात चौगुना, विस्तार बढ़ाने वाले इस युवक का नाम था प्रेम कुमार । उसके बिज़नेस के साथ जुड़े हुए लोग उसे प्यार से सिर्फ,`पी.के.` कहते थे ।

 पी.के. की ऑफ़िस के प्यून से लेकर, उसके धंधे से जुड़े सारे सरकारी अफ़सर और राजनीतिज्ञों को, कई बार इस बात पर ताज्जुब होता था कि, बातचीत और बाहरी ज़िंदगी में पाश्चात आधुनिक दुनिया के रंग में, रंगा दिखने वाला  कुशल व्यापारी प्रेम, अपनी वास्तविक ज़िंदगी में बिलकुल सीधा-सादा, सिद्धांतवादी, निर्व्यसनी और समय आने पर संबंध की क़दर करनेवाला इन्सान है ।

शायद, अत्यंत आध्यात्मिक सोच वाले, उच्च संस्कारी परिवार का आत्मनीन होने के कारण, पैसों का ढेर होने के बावजूद, प्रेम के तन मन को, व्यापारी आलम में प्रवर्तमान कोई भी बदी आजतक  छू न पायी थी ।

प्रेम ने आजतक अपने धंधे से जुड़े सभी व्यावसायिक साथीओं को, अपने निवास स्थान से बहुत दूर रखा था, अपने साथ व्यवसाय में जुडे अमीरजादों की बहकी हुई बुरी आदतों से, प्रेम भलीभाँति  वाक़िफ़ था, इसीलिए उसने कभी भी  घर से अंतरंग संबंध बांधने का, उनको मौका ही नहीं दिया था ।

आप पूछेंगे ऐसा क्यों? ठीक है, अगर आप इसका कारण जानना चाहते हैं तो सुनिए..!!

सिर्फ एक साल पहले प्रेम ने, विवाह करके, उसके बंगले में एक ऐसी अप्सरा को आश्रय दिया था कि, जिसे देख कर खुद ऋषि मुनिओं का ईमान भी डोल जाए..!!

जी हाँ, प्रेम की, मोम की गुड़िया समान, अत्यंत स्वरूप वान, पत्नी का नाम मृगया था ।

ऐसा कदम उठाने के पिछे, प्रेम का एक ही मकसद था, व्यवसाय से जुड़ी सारी चिंता और तनाव को अपने निवास के आंगन के भीतर  आने न देना..!! 
वैसे भी, ऑफ़िस से घर आने के बाद, अपनी सौंदर्य प्रतिमा अर्धांगिनी मृगया के साथ `काम` में मस्त और रत रखने वाली किसी एक क्षण को भी, व्यवसाय के तनाव से, वह आतंकित करना नहीं चाहता था..!!

वैसे तो,कई बार प्रेम को बिज़नेस के सिलसिले में, पूरे देश और विदेश में प्रवास करना पड़ता था और मृगया को इस महल-नुमा निवास में अकेले ही दिन काटने पड़ते थे, अतः मृगया के आग्रह के कारण, प्रेम ने अपने माता-पिता को भी जयपुर अपने साथ बुलवा लिया था । प्रेम के माता पिता का रुझान आध्यात्मिकता की ओर ज्यादा होने के कारण, वह अपने धर्म-ध्यान-सत्संग,सेवा पूजा में लिन रहते थे,पर मृगया को तो मानो अब अकेलेपन के दिनो में, सहारा मिल गया था ।

यहाँ से हम कहानी को अब, वर्तमान में ले जायेंगे..!!

प्रेम और मृगया का जीवन खुशी-खुशी बीत रहा है और आने वाला कल का दिन तो प्रेम और मृगया के लिए खास दिन है ।

जी हाँ, आने वाला कल प्रेम का जन्मदिन है । हालाँकि, प्रेम अपने बिज़नेस के सिलसिले से, बारह दिन पहले, चेन्नई गया हुआ है और अपने जन्म दिन के अवसर पर, कल सुबह, आठ बजे की फ्लाईट से वापस आने वाला है ।

आज सुबह से मृगया के पैर मानो धरती पर टिक नहीं पा रहे है..!! एक सुंदर सी तितली की भाँति, मृगया पूरे बंगले में यहाँ वहाँ उड़ती हुई, अपने प्रीतम प्रेम के जन्मदिन की खुशी में, बंगले की सजावट और उसके मनभावन व्यंजन बनाने की तैयारी में, घर के सारे नौकर-चाकर का मार्गदर्शन करने में लग गई है..!!  

सारा दिन व्यस्त रहने के बाद, दोपहर के चार बजने को है और अभी-अभी मृगया को ख़्याल आया कि, अति उत्साहित होने कारण, अभी तक उसने अपने प्रीतम प्रेम के लिए, कोई बढ़िया सा उपहार तो  ख़रीदा नहीं है?

इसीलिए, सासुमाँ से आज्ञा ले कर, शॉफर के साथ, मृगया फौरन सुपर मार्केट के लिए निकल पड़ी ।

हालाँकि, मृगया अभी सुपर मार्केट पहुँची ही होगी कि, उनके निवास स्थान के आंगन में एक टैक्सी आकर खड़ी हो गई और टैक्सी  से, साक्षात कामदेव के अवतार समान अत्यंत मोहक  एक युवक बाहर आया। बिलकुल ला-परवाह व्यक्तित्व, अमीरी की चुगली करते हुए महँगे गॉगल्स, गले में सोने की मोटी वजनदार चेईन, दोनों हाथ की सभी उंगलियों पर हीरे से मढ़ी हुई क़ीमती रिंग और उसके रूप के अनुसार उस युवक का नाम भी है.. `देव`..!!

टैक्सी ड्राइवर ने डॅकी से  दो भारी भरकम सूटकेस निकाली और बंगले के दरवाज़े के पास रख कर डोरबेल बजायी । प्रेम के, सरल-हृदय पिताजी ने, आगंतुक  अतिथि युवक का परिचय पाकर, उसे योग्य आवभागत के साथ बंगले के दीवान खाने में बिठा कर नौकर से पानी लाने को कहा ।

थोडीदेर के बाद, प्रेम के लिए उपहार के रूप में, अनोखे प्यार के अद्भुत प्रतीक समान, मार्बल के ताजमहल की बड़ी सी प्रतिकृति के साथ, मृगया जब मार्केट से बंगले पर वापस पहुँची तब तक तो, `अतिथि देवो भवः।` सूत्र को सार्थक करते हुए, मृगया के सास-ससुर ने आग्रह कर के, देव के लिए, बंगले में ही ग्राउंड फ्लॉर पर स्थित गेस्ट रूम में ठहराने की सारी व्यवस्था कर ली थीं ।

हालाँकि, रात्रि के भोजन के दौरान, प्रेम के माता-पिता के साथ, देव ने रात किसी होटल में जाकर ठहर ने के बारे में बहुत बहस की, पर आखिर जब मृगया ने भी कहा कि,`एक रात की ही तो बात है, आप ठहर जाएंगे तो प्रेम को भी अच्छा लगेगा..!!` तब, देव आगे कुछ न कह पाया और डिनर के बाद सीधा अपने रूम में जाकर कोई मैगज़ीन पढ़ने में व्यस्त हो गया ।

रात्रि के करीब दस बजे प्रेम के पिताजी ने अतिथि देव के रूम में जा कर उसे, कुछ चाहिए तो, बिना किसी  संकोच मांग ने का विवेक जता कर,  बगल वाले कमरे में आराम करने चले गए ।

यहाँ, नौकर को कह कर, देव के रूम में साबुन-तौलिया  और पीने का ठंडा पानी वगैरह रखवा कर, देव को `गुड़नाईट` कह कर मृगया भी बंगले के फ़र्स्ट फ्लॉर पर स्थित अपने बेडरूम में सो ने के लिए चली गई ।

देव भी, पूरे दिन का थका-हारा, पढ़ते-पढ़ते, अपने सीने पर मैगज़ीन रख कर,  रूम और बाथरूम की सारी बत्तीयाँ बुझाये बगैर, रूम का दरवाज़ा खुला छोड़ कर, कब गहरी नींद सो गया, उसी को पता न चला..!!

इतने बड़े निवास में, अगर किसी की नींद बैरी हुई थीं तो वह थी..मृगया..!!

बाथरूम में नहाकर फ्रेश होकर, नाईटी पहनकर, मृगया जब बिस्तर पर लेटी तब, उसके मन में, इतने दिनों के प्रेम के विरह के पश्चात, प्रीतम के आगमन पर, अपने प्रेम को, उसका खरीदा हुआ उपहार कैसा लगेगा..!! कल क्या-क्या प्रोग्राम बनायेंगे? जैसे अनगिनत विचार चल रहे थे..!! इन्हीं विचारों के साथ, मृगया सो ने के लिए व्यर्थ प्रयत्न करने लगी ।

करीब रात्रि के एक बजे, अचानक मृगया को ख़्याल आया कि,पूरी शाम इतनी व्यस्तता के चलते, नौकर उसी के बेडरूम में पानी का जग रखना भूल गया है..!!

आधी-अधूरी नींद में, मृगया पानी का जग लेने के लिए, जब नीचे किचन में आयी, तो उसने देखा कि," मेहमान देव, अपने सीने पर  मैगज़ीन रख कर, बाथरूम और बेडरूम की सारी बत्तीयाँ बिना बुझाये ही, सो गए हैं?"

मृगया को मन ही मन हँसी आ गई..!! प्रेम के सारे दोस्त भी ,प्रेम की माफिक ही लापरवाह  है..!! 

मृगया धीरे से देव के बेडरूम में गई  और देव की नींद में कोई ख़लल न हो, इसका ध्यान रखते हुए उसने बाथरूम की बत्ती बुझा कर, देव के सीने पर पड़ा मैगज़ीन उठा कर बाज़ू के टेबल पर रखा, फिर धीरे से दबे पाँव रूम के दरवाज़े के पास पहुँच कर, जैसे ही मृगया ने रूम की बत्ती बुझा कर, दरवाज़े की ओर अपने कदम बढ़ाये...!!

अचानक, मृगया को अपनी नाज़ुक कमर पर, देव के मज़बूत हाथों की पकड़ महसूस हुई । मृगया भय के कारण कांप उठी और वह कुछ ज्यादा सोचे-समझे उसके पहले ही, रूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था । किसी मुलायम पुष्प जैसी कोमल-हल्की मृगया को, देव ने अपने मज़बूत कंधे पर उठाया और वासना पूर्ति के बद-इरादे के साथ, मृगया को बेड पर पटक दिया..!!

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दोस्तों, क्या मृगया का बलात्कार और फिर उसकी आत्महत्या जैसा, करूण अंत होना चाहिए, या  किसी भी तरह, मृगया को देव की चंगुल से बच निकलने का मौका मिलना चाहिए?

बहुमत विद्वान पाठक जो कहेंगे, इस कहानी का ऐसा ही अंत लिखने का मेरा इरादा है ।

इस कहानी का सटीक और सशक्त अंत दर्शाने के लिए अपने अमूल्य प्रतिभाव देकर मेरा मार्गदर्शन  करनेवाले, shri Anvesh Chaudhary, Dr shri shyam gupt, shri Piyush Khare, shri Usman, sushri kavita verma , shri Dalsingar Yadav, shri shekhar, shri Rakesh kumar और अन्य सभी विद्वान पाठक मित्रों का तहे दिल से धन्यवाद करते हुए प्रस्तुत है ये कहानी ।

आप पूरी कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html 

मार्कण्ड दवे । दिनांक-०३-०६-२०११.  

9 comments:

  1. आध्यात्मिक वातावरण का ताना बाना बुना है आपने तो अंत में 'सीता' ही मुक्त होनी चाहिये रावण की कुचेष्टा से.सतीत्व की शक्ति का रंग तो दिखाना ही चाहिये एक अच्छी प्रेरणा के लिए .वर्ना तो पुराने घिसे पिटे अंदाज में जो आप बहुमत के नाम पर करना चाहें.वैसे मुझे उम्मीद है बहुमत मेरा साथ जरूर देगा.

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  2. mere hisaab se to us mahila ke man ke uper chod dena chiye kyoki wasna sabke man mei hoti hai chahe ladka ho ya ladki lakin samaya pe vivek ky kahta hai yahi vasna ko parast ker sakta hai..so..

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  3. Dalsingar Yadav

    dsysumimu@gmail.com

    समय की पुकार है कि मृगया को अपनी रक्षा करने की ताकत मिले ताकि वह अपनी अस्मत
    बचा ले।

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  4. kavita verma

    kvtverma27@gmail.com

    kuchli jati aurat ka aks kahaniyon me dikha kar ham mahila samaj ko kab tak ashay banate rahenge.
    sharir se mrugya komal hai lekin usme sahas ka sanchar
    keejiye use marshal arts jaisi vidha me prashikshit bataiye aur us badniyat
    insan se bach nikalne ka bharpoor mouka deejiye...sath hi uske pati ko apni
    patni ko samjhane vala aur khule vicharon ka insan banaiye...bhale ye
    kahaniyan hai.lekin agar inhe padh kar samaj ke 8-10 purush hi prerna pate
    hai to kya bura hai..ye to aapke lekhan ki sarthakta kahlayegi...bahut hua
    nari ka masla kuchla jana....ab use majbooti se pesh kariye taki vah auron
    ke liye misal ban sake....

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  5. Dr shyam gupt

    drshyamgupta44@gmail.com

    ---------म्रगया को मेहमान के/ या किसी के भी बेड रूम में जाने की व किताब आदि
    उठाने की क्या आवश्यकता थी.....उसे अपने पति से यह करने को कहना
    चाहिये......किसी भी पर-पुरुष के बेड रूम में स्त्री को जाने की क्या
    जरूरत......सती स्त्री सदा पहले से ही गलत निगाहों को पहचान लेती है और एसी
    स्थिति नहीं आने देती.....जोर-जबर्दस्ती की बात अलग है......पूरी कहानी दुबारा

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  6. Usman says:
    ४ जून २०११ १२:१६ पूर्वाह्न

    @ निरीह करूँन सी मृगया ने शोर मचाया लेकिन उसकी बंद दरवाजो के पार न जा सकी

    @ छट पटाती मृगया के शरीर मे अचानक इतनी शक्ति न जाने कहा से आ गयी की देव को एक और धकेलते मृगया दरवाजे की और भागी !

    देव भी पीछे भागा

    @ अपने हाथ मे पकड़े काँच के जुग को मृगया ने देव के सर पर दे मारा और दरवाजा खोल कर बाहर आकार शोर मचाया !

    @ अगले दिन के अखबारो मे और अपने घर के बाहर मौजूद मीडिया वालों को देख कर मृगया को लगा की वाकई उसने बहदुरी का काम कर दिखाया है

    @ अब इससे बढ़िया अंत तो हम आपको नहीं सुझा सकते

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  7. Piyush Khare Jun 04 04:12PM

    मैन Dr श्याम गुप्त जी की बात से पुरी tarah सेह्मत हून.

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  8. Dr shyam gupt Jun 04 09:04PM

    -------अविनाश जी क्या राम के जमाने के और आज के आदमी में कोई बद्लाव आया
    है....क्या आदमी का सेक्स बदलगया है या आदमी-औरत के मध्य सेक्स, प्रेम, कामुकता
    की भावनाएं बदलीं हैं...या सेक्स की भावना समाप्त हुई है.....या लडाई,
    झगडे...हिन्सा...जुनून, कोई भी भाव समाप्त हुए हैं, लूट, चोरी,डकैती..समाप्त
    होगयी है......नहीं.....अपितु बढी है...तो फ़िर राम के जमाने से अधिक आज
    स्त्रियों को सतर्क रहने की अधिक आवश्यकता है.....शास्त्रोक्त आदेशों पर चलने
    की अधिक आवश्यकता है....कि "स्त्री को एकान्त में किसी भी पुरुष...चाहे पुत्र
    ही हो...के साथ नहीं रहना चाहिये..." तभी तो आज्कल पिता-पुत्री,
    मां-बेटे...के संबन्ध भी खूब प्रकाश में आरहे हैं.....जो नारी स्वतन्त्रता के
    तथाकथित पाश्चात्य विचार-प्रवाह के साथ इन्टर्नेट, टीवी, फ़िल्में..कामुक
    विडियो-कथायें आदि पर खूब दर्शाये, लिखे, सुनाये जारहे हैं......
    ------पुरुष की तो गलती है ही परन्तु गलती होने के बाद आप क्या कर लेंगे...क्या
    इस क्षति-पूर्ति का कोई उपाय है आपके पास. ..अत: प्रीवेन्शन इस बेटर देन
    क्योर....... व्यर्थ की बातों... कहानियों से समाज नहीं चला करता...

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  9. Anvesh Chaudhary Jun 04 05:06PM


    Dr. Sahab, Fir vahi baat....agar koi ladaki agar kisi ke gha rmai jaati hai
    to usse fir ussi najar se hi dekhaa jata hai..kab badlegaa hmara
    samaj.....aaj bhi vahi sab hum sochte hai...jo bhagavan raam kee samaymai
    kaha gaya thaa seeta maiyaa ke liyee....is kahani mai aapko mrigyaa ki galti
    dikhi jo ki bagair kisi ke poochee kamare mai jaa kar sirf light ko bad
    karti hai per aapko us aadmi ki galti nahi dikhi jo ki apne dost ki bivi ke
    sath galat karne ki soch raha thaa....agar yahi hamari soch rahi thi kripyaa
    jo log mang kar rahe hai ladkiyo ko padhne likhaane ki..ladkiyoo ko
    independence ki un ko in sabke baare mai koi baat nahi karni
    chhaahiyee....or yee koi baat nahi ki raat ko agar mahmna ki kamre ki batti
    jal rahi hai to...usko band karne ke liyee vo raat 2 baje kisi ko jaga kar
    pooche ki band karu kaa naa karo....

    agar aaisaa aap sochte hai ki mrigya ki galti hai to...fir aaj hamare samaja
    mai har ghar mai shaitan rahta hai vo sasur bhi ho sakta hai devar bhi ho
    sakta hai or bhai bhi.....

    dhanyawad Shyam ji aapki soch ke liyee or or Mr. piyush khare ko bhi jo
    aapki haa mai haa milaa rahe hai neechee...

    Thanks and Regards,
    Anvesh Chaudhary

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