Monday, April 11, 2011

आधुनिक बोधकथाएँ- ०३ `रम डॅ; अगन डे; सयाने कपिल-डे ।

आधुनिक बोधकथाएँ- ०३ `रम डॅ;अगन डे;सयाने कपिल-डे ।



(courtesy-Google images)
 
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एक स्पष्टता - यह व्यंगात्मक बोध कथा का,` लोक पाल बील एपिसोड` से किसी भी प्रकार का कोई लेना देना  या `स्नान,सूतकाशौच` का भी  संबंध नहीं है । कृपया इसे किसी भी वर्तमान घटना के साथ न जोड़े । वैसे भी, किसी ने वर्ल्ड कप  कि अद्भुत सिद्धि का जश्न भी ठीक से मनाने नहीं दिया..!!
 
अन्य  फ़ालतू  बातों से, देश के सारे लोगों का, कितने दिनो से, ऐसे ही भेजा फ्राय हो रहा है..!! अब हम, दूसरी किसी भी बात पर, अपना भेजा फ़्राय  करवाने को कतई तैयार नहीं है ।
 
वैसे, ये बोध कथा लिखते वक़्त, मैंने भी अपने भेजे का सदुपयोग ज़रा सा भी नहीं किया है । इसे पढ़ते समय आप 
भी भेजा ट्राय (फ़्राय ) मत करना,अन्यथा आपके स्वास्थ्य को महा क्षति पहुंचने का गंभीर ख़तरा है..!!
 
( हे प्रभु, मैंने सब को सचेत करके मेरी ज़िम्मेदारी निभाई है, अब सब सलामत की आपकी बारी..!!)
 
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आधुनिक बोध कथा-`रम डॅ;अगन डॅ;सयाने कपिल-डॅ ।
 
किसी एक जंगल में `रम-डॅ` और `अगन-डॅ` नामक, दो ख़ूँख़ार बिल्ले अपने-अपने तय किये हुए इलाके की खोलीयों में निवास करते थे ।
 
आजतक दोनों बिल्लों ने अनगिनत चूहे मार कर, संसार पर वैराग्य आने के कारण, दोनों ने भगवा वस्त्र धारण करके सन्यस्त अंगिकार कर लिया था ।
 
रम-डॅ और अगन-डॅ, उनकी खोली के पास से आने जाने वाले लोगों को, नीति शास्त्र का ज्ञान बांटने की सदैव कोशिश करते थे,पर कुछ जम नहीं रहा था ।
 
रम-डॅ और अगन-डॅ बिल्लों ने, अपनी सत्संग सभा में प्रर्याप्त भीड़ इकट्ठा करने के लिए, जंगल राज के,`जोलीवुड`फिल्मउद्योग की फ़ालतू फिल्मों मे,आलतु-फ़ालतू अभिनय करके,नाम पाने वाले कई कलाकार टारझन,टारझणी,मुगलीओं,मुंगेरी और,` बारात में  न कोई पहचाने पर ,मैं दूल्हा की बुआ` जितना लं..बा उपनाम धारण करनेवाली, कुछ उन्मत्त टल्ली,मल्ली,शेख़चिल्ली के अतिरिक्त, मन ही मन प्रसिद्धि पाने के लिये तरसते रहते, दूसरे कई बाबू-बेबीओं को, दोनों बिल्लोंने अपने मंच पर आमंत्रित करके भी आज़मा लिया, पर अंत में सभी हथकंडे बेअसर ही रहे..!!
 
ऐसा नहीं था की लोग इकट्ठा न होते थे,लोगों का तो क्या है? कहीं भी ज़रा सी भीड़ देखी की जमा हो जाते हैं..!! 

रम-डॅ और अगन-डॅ, दोनों बिल्लों की सत्संग सभा में भी लोग आते थे,पर अजीब से बेकार,अंटसंट सवाल पूछ कर, दोनों बिल्लों के नाक से दम निकाल देते थे ।   इतना ही नहीं, सही उत्तर न मिलने पर लोग, दोनों बिल्लों को,`Bloody Indian Dog` की गाली देकर,बिल्लों के सामने खुद ही भोंकना शुरू कर देते थे ?
 
ऐसे में एक दिन,दोनों बिल्लोंने देखा की, ` मंतर,हो जा छूमंतर` नामक प्रसिद्ध मैदान में, समाज के माने हुए, स्वैच्छिक - अवेतन समाज सेवक, श्री पन्ना पगारे (बिना वेतन लिए?) अपनी नजरों  के सामने, थाली में पड़े हुए,`जाँचपड़ताल` कंपनी के आटा से बने, एक बड़े से ब्रैड से (डबल रोटी) नाराज़ हो कर, ९५ मिनट के `आमरणांत अनसन`जाहिर करके, ब्रैड को, `TO DO (eat) OR NOT TO DO(eat)?` जैसा कुछ  गहन सोच विचार कर रहे थे ।
 
बस फिर तो क्या था? मौका पाते ही, रम-डॅ और अगन-डॅ बिल्लों ने, उस  ब्रैड को,श्री पन्ना पगारेजी की थाली से, चोरी छिपे उड़ा लिया..!!
 
अब दोनों बिल्लों को बहुत बड़ा जेकपोट ब्रैड के रूप में हाथ तो लग गया, मगर अपने असली स्वभाव के चलते, पूरा ब्रेड खुद अकेले ही हज़म करने के चक्कर में, दोनों बिल्ले आपस में झगड़ने लगे..!!  रम-डॅ और अगन-डॅ बिल्लों का झगड़ा, बढ़ते-बढ़ते, इतना बढ़ गया की, उस ब्रैड़ को बाज़ू छोड़कर, दोनों एक दूसरे के साथ, सचमुच हाथापाई पर उतर आए..!!
 
रम-डॅ और अगन-डॅ बिल्ले, लड़-झगड़ कर जब, थक-हार गए,तब किसी की तालियों की आवाज़ सुनकर उन्होंने उपर देखा..!! उन्होंने देखा की, पास के ही एक वृक्ष की सब से उँची शाखा पर बैठ कर, `कपि-डॅ` नाम का बंदर, ना जाने कब से, उनकी लड़ाई, तमाशे का आनंद उठा रहा था..!!
 
रम-डॅ और अगन-डॅ, दोनों बिल्लों ने आपस में कुछ सलाह मशवरा करके, सयाने `कपि-डॅ` बंदर को बड़े ही नम्र भाव से बिनती की..!!
 
" हाय..कपि-डॅ भैया..!! सब से उंचे स्थान पर बैठकर,आप पिछले ९५ मिनट से हमारी लड़ाई देख रहे हैं? आप को यह शोभा नहीं देता..!! कृपया नीचे उतर आईए और ज़रा इस ब्रैड को, हम दोनों के बीच बराबर-बराबर बांट कर हमारा न्याय कीजिए  ना..प्ली..झ..!!"
 
भगवा वस्त्रधारी दोनों बिल्लों द्वारा, अति नम्र भाव से की गई इस बिनतीने, कपि-डॅ बंदर को वृक्ष की उँची शाखा से, नीचे ज़मीन पर आने पर मजबूर कर दिया..!! 

नीचे आकर कपि-डॅ बंदर ने सब से पहले,जंगल राज के राजा श्री मोकहसिंह को मोबाईल लगाया और रम-डॅ और अगन-डॅ, दोनों बिल्लों की समस्या के निवारण हेतु,उनका मार्गदर्शन माँगा ।
 
जब कपि-डॅ बंदर का फोन आया तब, जंगल राज के प्रामाणिक राजा श्रीमोहकसिंहजी अपनी फटीं हुई  सी  रहे  थे..!! ` फटीं चप्पल` टाँकने का काम बाज़ू रखकर, श्रीमोहकसिंहजी ने, बड़े ही विनम्र स्वर में, दूसरे फोन पर, ना जाने किससे बात की,पर बात ख़तम होने पर, वह अपना चिरकाल मनमोहक अंदाज़ त्याग कर, बड़े मायूस से लग रहे थे..!!
 
अपना मनमोहक अंदाज़ त्याग कर, जंगल राज के राजा श्रीमोहकसिंहने,फोन पर, उस कपि-डॅ बंदर को, बहुत खरी- खोटी सुनाते हुए कहा..!!

" अबे साले, दो कौड़ी के बंदर, आज फिर से, तुने उपर से, मुझे डांट खिलाई ना? क्या तुझे अपने बाप-दादा के समय का ऐसा ही एक वाक्या याद नहीं है? जिस में, ऐसे ही एक ब्रेड के लिए लड़ रही, दो बिल्लीओं का न्याय करने का ढोंग रचा कर, तेरे दादा ने, उन दो बिल्लीओं का पूरा ब्रेड चटकाया था? अगर तुम्हें ये बात याद न हों तो,उपर से आदेश आया है की,जंगल राज से तेरा मंत्री पद का,पोर्टफोलियो वापस लिया जाए..!!
 
मजबूर राजा श्रीमोहकसिंह की, यह बात सुनकर बंदर कपि-डे क्षुब्ध हो गया, उसने सोचा, "बड़ी मुश्किल से हाथ लगे पोर्टफोलियो, मेरे हाथ से कहीं  छीन ना जाए, उससे तो अच्छा यही है की, कुछ भी तिकड़म करके, मैं ये दोनों बिल्लों का ब्रैड ही क्यों न छीन लूँ?"
 
अपने विचार पर अमल करते हुए, कपि-डे बंदर ने, तुरंत अपने`दिमाग` नामक झोली में से, `चर्चा; वार्ता` नामक  तराजू  झट  से  बाहर निकाला..!!
 
कपि-डॅ बंदर, अपना सच्चा और तटस्थ न्याय अवश्य करेगा, यही विचार मन में धर कर, रम-डॅ और अगन-डॅ, बिल्ले ,बड़ी ही उम्मीद भरी नज़रों से, कपि-डॅ बंदर की ओर देखने लगे ।
 
कपि-डे ने,`जाँचपड़ताल` कंपनी के आटे से बनाए गए बड़े से ब्रैड को अपने दोनों हाथ से पकड़ कर, उसके एक सरीखा दश टुकड़ा किया और फिर `चर्चा; वार्ता` कंपनी के तराजू के, `दांयी समिति-बांयी समिति` नामक दो पलड़ों में, ब्रैड के पांच-पांच टुकड़े रख दिए..!!
 
जैसे ही, कपि-डे ने, सही तोल-वजन करने के लिए तराज़ू उठाया, "ये बंदर तोल-माप सही कर रहा है या नहीं?", ये देखने के बजाय, रम-डे और अगन-डे बिल्ले आपस में फिर से बहस करने लगे..!!
 
बिल्ले अगन-डॅ ने, रम-डॅ की ओर घूरते हुए कहा," रम-डॅ, दो-चार सालों से, सब के सामने, तुम बहुत बकवास कर रहे होना? आज देख लेना, जंगल राज के, ये सच्चे जवान मर्द, कपि-डॅ बंदर का सच्चा न्याय..!! अगर तेरे हिस्से में, `जाँचपड़ताल` ब्रैड का एक निवाला भी आया तो मैं, `प्रशांत` महासागर में डूब कर अपनी जान देने का वचन देता हूँ?"
 
अगन-डॅ की ऐसी कड़वी बात सुनकर, रम-डॅ बिल्ला तिल-मिला गया और बोला," अच्छा? अगर तेरे हिस्से में ब्रैड का एक भी टूकडा हाथ आएगा तो, मैं तुझे `कुल भूषण` का खिताब देकर, तेरा सार्वजनिक बहुमान करुंगा?"

थोड़ी ही देर में,दोनों बिल्लों के बीच, `तु-तु;में में` से आरंभ हुए झगड़ेने, फिर से भयंकर आग पकड़ ली और रम-डॅ; अगन-डॅ, दोनों में फिर से भयंकर झगड़ा शुरु हो गया..!!

इस बार तो ना जाने क्यों, झगड़ा इतना बढ़ गया की, दोनों बिल्ले उछल-उछल कर एक दूजे के शरीर को नोंचने लगे? दोनों बिल्ले के झगड़े की बात सारे जंगल में तुरंत फैल गई और उन दोनों में सुलह-संप कराने के उद्देश्य से,` मंतर,हो जा छूमंतर` मैदान में, सैंकड़ो कुल-भूषण, समझदार, बुद्धिजीवी  नागरिक,`शांति`दूत बनकर, भरी दोपहर में, सूरज की उपस्थिति के बावजूद, हाथ में सुलगती हुई मोमबत्तीयाँ लेकर, उस मैदान में जमा हो गए..!!
 
फिर तो क्या था? जैसे शक्कर की बड़ी सी गाँठ पर,बिना निमंत्रण दिए, सैंकड़ो मख्खीयां उड़ आ बैठती है,ऐसे ही हजारों लोगों को इकट्ठा होते देखकर, कई सारी न्यूज़ चैनल के संवाददाता, हाथ में माइक और कैमरा उठाकर, पागल की भाँति दौड़ते चले आए । आते ही  सारे संवाददाता, पास मे खड़ा, छोटा-बड़ा, जो भी हाथ लग जाए, उनको अंटसंट सवाल पूछ कर, खानापूर्ति साक्षात्कार करने में जुट गए ।
 
थोड़ी ही देर में, देश की सारी न्यूज़ चैनल पर,दोनों भगवा वस्त्रधारी बिल्ले, रम-डॅ और अगन-डॅ, के बीच हो रहे `LIVE`झगड़े की खबर,` ब्रेकिंग न्यूज़` के रूप में टीवी पर, फ्लैश होते ही, `कहीं हम भी पिछे न रह जाए?`, सोचकर, प्रिंट मीडिया के सारे अखबारवालोंने भी, अपने सभी कर्मचारीओं को,`दोपहर` की अतिरिक्त आवृत्ति छापने के धंधे पर लगा दिए..!!
 
इधर, लगातार शांति बनाए रखने की अपील करने के बावजूद, इन दो मूर्ख बिल्लों की वजह से, मचे भारी बवाल के कारण, अपने सारे किए कराए पर पानी फिरता हुआ देखकर, समाज के माने हुए, स्वैच्छिक-अवेतन समाज सेवक, श्री पन्ना पगारे ने ,` मंतर, हो जा छूमंतर` नामक प्रसिद्ध मैदान के सार्वजनिक मंच से, अपने ही क्रांतिकारी साथीदारों पर नाराज़ होकर, एक बार फिर, ९५ मिनट का `आमरणांत अनसन`घोषित कर दिया..!!
 
वैसे, ये घोषणा  अवश्य सार्थक हुई.!! समाज सेवक, श्री पन्ना पगारे की, इस कठोर घोषणा से, सारा माहौल धीरे-धीरे, एकदम शांत हो गया ।

दोनों बिल्लों का लड़ने-झगडने का जुनून उतर जाने पर,उसी वक़्त थक-हार कर शांत हुए, रम-डॅ और अगन-डॅ, दोनों बिल्लों ने, अपने अपने हिस्से का `जाँचपडताल` ब्रांड  ब्रैड  पाने के लिए जब, कपि-डॅ बंदर को ढूंढा तब उन्होंने क्या देखा..!!

कपि-डॅ बंदर, `चर्चा-वार्ता` ब्रांड के तराज़ू के,`दांयी-बांयी समिति` नामक दोनों पलडों मे से, `जाँचपड़ताल` कंपनी का पूरा ब्रैड, खुद ही खाकर,`चर्चा-वार्ता`तराजू को फिर से अपने `दिमाग` की झोली में डालकर, कपि-डॅ बंदर उस वृक्ष की सबसे उंची शाखा के, अपने उंचे सिंहासन पर पहुंच चुका था ।
 
वहाँ बैठकर कपि-डॅ बंदर, बड़े ही मन-मोहक अंदाज़ और भरपेट, तृप्त स्वर में जंगल राज के प्रामाणिक राजा श्रीमोहकसिंह को, आज के एपिसोड का पूरा आंखोदेखा ब्यौरा सुना रहा था..!!
 
"हाँ जी सर, अब चिंता की कोई बात नहीं है..!!  हमारे दोस्त, गोरे अँग्रेज़ बंदर की,सिखाई हुई, `फूट डालो,राज करो`, नीति को, हमारी काले अँग्रेज़ों की भाषा में मिला कर, उन सब आंदोलनकारीओं के बीच सफलतापूर्वक, मैंने फूट डाल दी है..!! `जाँचपड़ताल` कंपनी का ब्रैड भी, अब हमारे कब्ज़े में (मेरे पेट में) सलामत हैं । अब थोडे दिनों तक हमें शांति ही शांति है..!! हाँ,सर एक बात कहना तो भूल ही गया? समाज के माने हुए, स्वैच्छिक-अवेतन सेवक, श्री पन्ना पगारे ने ,` मंतर,हो जा छूमंतर` मैदान से, अपने ही क्रांतिकारी साथीओं पर नाराज़ होकर,फिर से, ९५ मिनट का कठोर,`आमरणांत अनसन` घोषित किया है..!! मगर इसके साथ हमारा कोई लेना देना नहीं है ? सर, अब मैं फोन रखूँ? सर, मेरा पोर्टफोलियो ज़रा मुझ से कहीं छीन न जाए, थोड़ा ध्यान रखना साहब..!!"   

आधुनिक बोध- व्यक्तिगत अहम से, हमेशा देश हित सर्वोपरि होता है, यह बात सभी देशवासीओं को ज्ञात होना चाहिए ।

(खास करके, अन्य ज्ञान पिपासुओं को,रात-दिन उपदेश देने वाले साधु-संत के लिए यह ज्ञान खास आवश्यक है?)

॥ ॐ शांति शांति शांति..ही..ही..ही..ही..ही..॥

मार्कण्ड दवे । दिनांक- ११/०४/२०११.

8 comments:

  1. राम बंसल says:
    ११ अप्रैल २०११ ११:०६ अपराह्न

    वर्ल्ड कप कि अद्भुत सिद्धि का जश्न...

    हा हा हा

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  2. राम बंसल says:
    ११ अप्रैल २०११ ११:०७ अपराह्न

    वैसे, ये बोध कथा लिखते वक़्त, मैंने भी अपने भेजे का सदुपयोग ज़रा सा भी नहीं किया है । इसे पढ़ते समय आप
    भी भेजा ट्राय (फ़्राय ) मत करना,अन्यथा आपके स्वास्थ्य को महा क्षति पहुंचने का गंभीर ख़तरा है..!!

    बहुत अच्छे आपने बता दिया की दिमाग के बिना ही पढ्न है

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  3. गजेन्द्र सिंह says:
    १२ अप्रैल २०११ १२:१५ पूर्वाह्न

    बड़ा ही मजेदार लिखा है , सही कहा आपने की इसका दिमाग से कोई लेना देना नहीं है

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  4. M.R.Ghori says:
    १२ अप्रैल २०११ १२:१६ पूर्वाह्न

    very nice

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  5. रामपुरी सम्राट श्री राम लाल says:
    १२ अप्रैल २०११ १०:१४ पूर्वाह्न

    अच्छा लेखन इस मंच की शान ही बढ़ाएगा और आशा है की आप इसी तरह का अच्छा लेखन कार्य करते रहेंगे .....

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  6. रामपुरी सम्राट श्री राम लाल says:
    १२ अप्रैल २०११ १०:१४ पूर्वाह्न

    ॥ ॐ शांति शांति शांति..ही..ही..ही..ही..ही..॥

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  7. बंटी "द मास्टर स्ट्रोक" says:
    १२ अप्रैल २०११ १०:२२ पूर्वाह्न

    उत्तम लेखन

    कृपया हमें भी इस ब्लॉग का सदस्य बना ले ... आजकल हमारे पास कोई काम नहीं है (सारी पहेलिया बंद हो चुकी है ... अब किसका जवाब बताए)

    हम भी कुछ लिखना चाहते है जिससे पाठक हंस सके

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