Friday, March 11, 2011

महज-बीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।

महज-बीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।
(courtesy-Google images)

नाम - महज-बीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।

जन्म - १ -अगस्त -१९३२.

दुखद निधन -३१ -मार्च -१९७२.

पिता का नाम - अली बक्षजी ।

(संगीत टीचर -हार्मोनियम प्लेयर-पारसी थियेटर-उर्दू शायर -संगीतकार फिल्म-`शाही लूटेरे`। )

माता का नाम - प्रभादेवी उर्फ़ इक़बाल बेग़म ।

( प्रभावतीदेवी, शादी से पहले `कामिनी` के नाम से स्टेज एक्ट्रेस -नर्तकी थीं । शादी के बाद मुस्लिम धर्म अंगिकार करके `इक़बाल बेग़म`` नाम रख लिया । कहते हैं की, उनकी माता `हेमसुंदरी` का विवाह `टैगोर परिवार ` में हुआ था । )

दो छोटी बहनें - नाम - ख़ूरशिद और मधु ।

जिंदगी के कुछ दुखद पल -

१. `ट्रैजेडी क्वीन ` मीनाकुमारीजी  का जन्म होने के तुरंत बाद, उनके पिता के पास अस्पताल का  बिल  भरने के लिए पैसे न होने की वजह से , कुछ घंटे के लिए, मीनाकुमारीजी को यतीमख़ाने में गुज़ारने पड़े थे । कुछ समय पश्चात ,अस्पताल के बिल  की रकम अदा करके, उनके पिता उन्हें यतीमख़ाने से वापस घर ले गये थे ।

२. सुश्री मीनाकुमारीजी अपने पिताजी से ,`मुझे पाठशाला जाना है, पढ़ाई करनी है ।` की रट़ लगाती रहीं और ग़रीबी के कारण उनके पिताजी ने उन्हें सिर्फ सात साल की कच्ची उम्र में ही, ` बेबी मीना ` के नाम से, रुप-तारा स्टूडियो में, जिंदगी की  पहली फिल्म,`फ़रज़ाद-ए - वतन - १९३९.` में कैमरा के सामने लाकर खड़ा कर दिया ।

उस के बाद, अपनी उम्र से पहले ही जवान हो कर, मीना कुमारी के नाम से, धार्मिक  फिल्म, `गटोर्गच्छ -१९४९` और तिलस्मी फिल्म -`अलादिन और जादुई चिराग़ -१९५२` जैसी फिल्मों में, वेतन पाकर आपने  घर का निर्वहन करती रहीं ।

जिंदगी के कुछ हसीँन पल -

१. निर्माता - श्री विजय भट्ट साहब की, सन-१९५२ में निर्मित फिल्म,` बैजु बावरा ` ने, मीनाकुमारीजी को, सफल अभिनेत्री के रुप में स्थापित किया, उपरान्त  एक मात्र उनको `बेस्ट एक्ट्रेस ` का फिल्म फेर अवार्ड भी प्राप्त हुआ ।

२. अब मीनाकुमारीजी के नाम के ड़ंके बजने लगे । एक के बाद एक, सफल फ़िल्मो की जैसे लाइन लग गई । `परिणिता -१९५३.`; `एक ही रास्ता -१९५६.`; `शारदा - १९५७.`; दिल अपना और प्रित पराई -१९६०.`; कोहिनूर -१९६०.` इत्यादि...।

३. इसी दौरान, मीनाकुमारीजी ने उम्र में, अपने से  पंद्रह साल बड़े, श्री कमाल अमरोहीजी से, सन-१९५२ में प्रेम लग्न कर लिए । (तलाक़ - १९६०)

सन-  १९६२ में समर्थ  निर्माता-निर्देशक-अभिनेता श्री गुरुदत्तजी के साथ,`साहिब बीबी और ग़ुलाम` और उसके बाद फिल्म `छोटी बहु` में हताशा के कारण, शराब में डूबी हुई,  पत्नी का  अविस्मरणीय अभिनय किया ।

दोस्तों, और विधाता के लेख देखें, बाद में मीनाकुमारीजी वास्तविक ज़िंदगी में भी, अकेलेपन से इस क़दर हताश हुई की , वह सचमुच  शराब की लत की शिकार हो गई ।

शायद, वास्तविक ज़िंदगी के बेपनाह दर्द को अभिनय में ढाल कर मीनाकुमारीजी ने, फिल्म `छोटी बहु` में, `पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे` गाने में, ऐसा ला-जवाब अभिनय  किया है की, आज भी यह गाने के साथ ही, उनके चाहने वालों की आँखें नम हो जाती है ।

करीब ९० से ज्यादा फिल्में, जिनमें ज्यादातर फिल्मों ने सफलता के शिखर को छुआ था, करीब ३० साल के फिल्मी करियर के दौरान ज़ालिम ज़माने से और ज्यादातर अपने पति की ओर से बेक़द्री, धोखा, बेवफ़ाई और सन-१९६० में,  हुए तलाक़ की पीड़ा से आहत होकर, इस चकाचौंध से भरी नकली दुनिया से मीनाकुमारीजी का दिल उठ गया ।

शराब की आदत ने उन्हें आर्थिक रुप से भी तोड़ दिया । मानो उनके शरीर ने भी उनका साथ न देने का मन बना लिया था,अंततः उनकी  सेहत  ख़राब रहने लगी।

फिर भी,  भूत-पूर्व पति कमाल अमरोही का, अभी भी जैसे कोई ऋण अदा करना बाक़ी रह गया हो, मीनाकुमारीजी ने, आज भी फ्रेश और क्लासिक फिल्मोमें गिनी जानेवाली, श्रीकमाल अमरोहीजी की कमाल फिल्म ` पाक़ीज़ा ` में  आख़री बार अपनी जान डालकर फिर से ला-जवाब अभिनय किया ।

पर हाय रे किस्मत..!! ट्रैजेडी क्वीन मीनाकुमारीजी की तक़दीर ने फिर से, मानो उनके जन्म के समय का हादसा दोहराना  तय किया हो, `पाक़ीज़ा ` के रिलीज होने के दो माह पश्चात, उनकी आख़री फिल्म `पाक़ीज़ा` ` पर, मीनाकुमारीजी के चाहनेवालों की भीड़ के साथ, आय के नये विक्रम स्थापित कर रही थी और यहाँ  अकेलेपन के दर्द से दुःखी,मीनाकुमारीजी के पास अपने इलाज के लिए,अस्पताल का बिल भरने के लिए पैसे न थे ।

शायद इसी लिए, सुश्री मीनाकुमारीजी ने अपनी आख़री साँस भरते वक़्त कहा की,

" तलाक़ तो दे रहे हो, नज़रें कहर के साथ, जवानी भी मेरी लौटा दो महेर के साथ ।"

प्यारे दोस्तों, अगर यह लेख के द्वारा ट्रैजेडी क्वीन मीनाकुमारीजी के लिए, किसी के मन में अनु-कंपा या दर्द की सूनामी न उभर आयी हो तो, मैं उनके दर्द भरे दिल, लेकिन मधुर कंठ से गाये हुए कुछ प्रसिद्ध अशआर पेश करने की इजाज़त चाहता हूँ , जिसे सुनकर, क्या पता आपकी आँख का एक कोना, शायद ट्रेजेडी क्वीन की याद में, आँसू  से भींग जाए..!!

डाउनलोड लिंक्स-








अंत में, हम सब मालिक से यही दुवा कर सकते हैं, मीनाकुमारीजी आप जहाँ भी रहें, बस अब बड़े सुकून से रहें ।

" सुश्री मीनाकुमारीजी, अगर आप हमें सुन रहीं हैं तो हम आपसे  कहना चाहते हैं की, पुरी दुनिया के कोने-कोने में बसने वाले आपके सभी चाहनेवालें आज भी आप को सच्चे दिल से उतना ही प्यार करते हैं ।"

मार्कण्ड दवे । दिनांक - ११ -०३ -२०११.

3 comments:

  1. Shree Markand Bhai:

    Too cool and very very informative article, came to read from you, ever !

    Did not realize that after the release of Pakeezaa, she was in the same situation ( financially ) like that producer - K. Abbas who made Mughal E azam m, the extreme super-hit of that time and still had not money to eat 'chana' on the road ! Was through out sleeping on the floor here, there , anywhere !!

    BTW, Meenakumari had one finger missing on one of her hands ( Unlike our Hrithk having total 11 fingers ) and she was always portrayed in every movie, by hiding that.
    Any clue how and when did she miss the finger ?

    ( BTW, Jamesbond actress - Holly star - Halle Berry also has 6 toes )

    http://goo.gl/LQ8w1

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  2. Thank you for presenting us with such a wonderful bouquet of songs. I was particularly touched by Meena Kumari's "Ashaar" - 'Chaand Tanha." Could you please tell me who sang the song? It did sound like Meena Kumari herself.

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  3. आदरणीय...लघु रूप में जो भी जाना-समझा था अब तक मीना जी के बारे में..उसमे थोड़ा और इजाफा हो गया आपकी श्रद्धांजलि पढ़ के. बहुत बरस पहले मैंने उनकी शायरी की किताब खरीदी थी झांसी स्टेशन से..गुलज़ार साहब ने जिसका इन्तेख्वाब किया है. तब से जब तब पढता रहता हूँ और हाल ही में सी डी भी खरीदी उनकी आवाज़ में उनकी शायरी की..दर्द की खुली किताब थी वो..और मैं तो सच मुच बहुत ही छोटा हूँ कुछ कहने को..पर दर्द को महसूस कर लेता हूँ..कितनी दर्दमंदी से उन्होंने कहा..तलाक़ तो दे रहे हो नज़रे कहर के साथ, जवानी भी मेरी लौटा दो मैहर के साथ" अजब विडम्बना है, दर्द की बयानी वाह कहलवाती है!

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