(courtesy-Google images)
`माही..माही..माही..भाई, ये तुमने क्या कही..!!`
गधे बन गए बाप, बता क्या ग़लत, क्या सही?"
गधे बन गए बाप, बता क्या ग़लत, क्या सही?"
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प्रिय भाई, श्रीमहेन्द धोनी उर्फ माही,
सबसे पहले तो क्रिकेट विश्व कप जीतने की खुशी में, हम सभी ब्लॉगर्स बंधु-भगिनी की ओर से ढेर सारी बधाई ।
मगर..मगर..मगर? फाइनल मैच जीतने के पश्चात हुए साक्षात्कार में, एक सवाल के जवाब में, तुमने ये बात क्यों कही और कैसे कही ?
प्रिय माही,शायद तुम्हें पता होगा, रोमन तत्व चिंतक,छटादार वक़्ता, राजनीतिक, प्रसिद्ध न्यायविद और रोमन साम्राज्य के संविधान के रचनाकार, मार्कस ट्यूलिस सिसेरो (कार्यकाल, ३ जनवरी १०६ बीसी से ७ दिसम्बर ४३ बीसी) ने, भले ही कहा हो की, " हमें यही कल्पना करनी चाहिए, सारी अखिल सृष्टि (पृथ्वी) और समग्र मानव जाति, एक अखंड राष्ट्र समूह है । परमेश्वर और सारे मानव इस राष्ट्र समूह का हिस्सा है । (वसुधैव कुटुंबकम ।)
मिस्टर मार्कस ट्यूलिस सिसेरो की, ये बेतुकी बात, माही तुमने क्यों दोहराई? ऐसा कोई करता है क्या?
तुमने कहा," हम टॉस भले की हार गए, पर आज दोनों टीम, अच्छे टीम स्पिरिट के साथ, एक होकर खेली, क्रिकेट विश्व में खेल भावना की जीत हुई..!!"
क्यों भाई, जीतने के बाद, थकी-हारी विरोधी `अतिथि टीम` को, ऐसा चुटकुला कोई सुनाता है क्या? हमारे देश की `अतिथि देवो भवः।` की परंपरा भूल गए क्या?
( भूल गए हो तो, हमारे कई ब्लॉगर, तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी करके याद दिला सकते हैं, भेज दूँ, क्या उन सब को?)
हमारे कई ब्लॉगर मित्रों का यह मत है की, तुमसे एक सीधा सा सवाल किया गया था, इसका मतलब ये नहीं है, हँसी-मज़ाक समझकर, शालीनता त्याग कर कोई भी, कैसा भी मन चाहा, अंट शंट उत्तर दे दो..!! हँसी मज़ाक भी एक मर्यादा में हो तो ही बेहतर होता है । `हे..माँ, मा..ता..जी..!!`
मैं भी अपने मित्रों की इस बात से सहमत हूँ, यह सब कुछ ज्यादा हो गया..!!
हमें अपनी इन्सानियत नहीं छोड़नी चाहिए । बेशक, वर्ल्ड कप के फाइनल में हिंदुस्तान ने,श्रीलंका को हराया, मगर ये एक खेल है । जीतने के बाद भी, हमें खेल भावना बरकरार रखनी चाहिए ।
"ये बात अलग है की श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के कप्तान कुमार संगकारा , टॉस उछलने के बाद, तुरंत अपनी बात से मुकर गया और फिर से टॉस उछालना पड़ा..!!"
फिर भी इन्सानियत के खिलाफ दिए गये, तुम्हारे इस उत्तर की हम कड़ी निंदा करते हैं..!!
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अब तुमने ये भी कहा," अच्छा हुआ, हम मैच जीत गए, वर्ना मुझे देशवासीओं को जवाब देना पड़ता की, अश्विन की जगह श्रीसंत क्यों और बल्लेबाजी के क्रम में, युवराज की जगह, मैं क्यों?"
माही, अगर तुम चाहो तो, हमारे देश में, आजकल सब के बाप होने का दावा करके बिंदास धूम रहे, कई पदासिन या पदभ्रष्ट (पथ भ्रष्ट?) गधों के नाम लेकर, मैं अभी उनकी संख्या बता सकता हूँ..!! ऐसे नकली बाप को तो, किसी ने कुछ नहीं कहा? फिर, तुम को ही क्यों कुछ कहते?
तुम ये भी तो कह सकते थे, "मैं मजबूर था, मेरे हाथ बंधे हुए थे..!! इतना ही नहीं, किसी बड़े नामधारी सिलेक्टर, मीडिया महिला या पुरुष पत्रकार या फिर मेरी मर्ज़ी विरुद्ध, दूसरे किसी के दबाव में आकर श्रीसंत को टीम में सामिल करना पड़ा?"
रही, युवराज से, आगे क्रम में खेलने की बात..!! देश की आपत्ति के वक़्त, अपने कंधो पर सारी जिम्मेदारी लेकर, टीम की रहनुमाई करने जैसा, ग़लत उदाहरण कायम करके, तुमने आज की युवा पीढ़ी को गुमराह करने का, बहुत बड़ा पाप किया है..!! तुम्हें ये शोभा नहीं देता..!!
माही, अब मैं तुमसे एक सवाल करता हूँ, ईमानदारी से उत्तर देना..!!
( भ्रष्ट नेताजी की तरह, ये मत पूछना, ईमानदारी किस चिड़िया का नाम है?)
* रियलिटी शॉ, `राखी का इन्साफ़` पर कथित आरोप था की, किसी निर्दोष लक्ष्मण को, ` नामर्द- नपुंसक` कहा गया और उसे उकसा कर, ख़ुदकुशी करने के लिए मजबूर किया गया..!! उनको तो किसी ने कुछ नहीं कहा? फिर, तुम्हें ही क्यों कुछ कहते?
(आज, कलयुग के रामराज्य का यह दुर्भाग्य है की, " हम लंका तो जीत लेते हैं, पर लक्ष्मण को `नामर्द` की गाली देकर, बे-मौत ही मार देते हैं ..!! हे बजरंग बली, आप तो सदा अमर हैं, अब तो गदा धारण कीजिए?")
* रियलिटी के नाम पर, `बिग बॉस` में अली और सारा की, सुहाग रात `LIVE` दिखाने के आरोप चेनलवालों पर हुए थे..!! हुए थे ना? तो फिर, उनको तो किसी ने कुछ नहीं कहा? तुम को ही क्यों कहते?
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मैच के बाद, साक्षात्कार में, तुमने यह भी कहा की," ये जीत हमारे कोच- गैरी कर्सटन से लेकर, सारी टीम के प्रयत्न का फल है । इस जीत में जिन्होंने अपना योगदान किया है, उन सब का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ ।"
क्यों भाई,माही? ऐसा झूठ उगलने की क्या ज़रुरत थी? आज़ादी के `स्वर्ण जयंती महोत्सव` का जश्न मना कर अब हम `प्लॅटिनम ज्यूबिली` की ओर बढ़ रहे हैं । इतने बरसों में,हमारे देश में, इतनी सारी सरकारें सत्ता पर आसीन होकर, निष्ठापूर्वक अपना-अपना ( खुद का) `काम` करके चली भी गई..!! आजतक, एक भी सरकार ने, अपनी किसी उपलब्धि या तो फिर कामयाबी का श्रेय, अपनी कैबिनेट टीम, या देशवासीओं को दिया? नहीं ना? (ही..ही..ही..ही..!!)
सत्तासिन (नशाधिन?) उच्च पदाधिकारी, पी.एम.से लेकर चपरासी तक, सभी लोग अच्छे-अच्छे कामों का श्रेय किसी आलतु-फालतु को नहीं देते और बुरे कामों में अपनी असहायता-मजबूरी का राग आलापते हैं? फिर क्या सोचकर, तुमने अपने जीत के जश्न में, सभी साझीदारों की वाहवाही की? ये ठीक नहीं किया..!!
श्रीसुभाषचंद्राजी की, ICL (इंडियन क्रिकेट लीग) को टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए, BCCI के मना करने के बाद, Bihar Cricket Association (BCA-1935) के प्रेसिडन्ट श्रीलालुप्रसादजीने, जब वह रेल मंत्री थे तब देश के सारे रेलवे स्टेडियम की सुविधा ICL को देने की उदारता जताई थी ना? उनको तो किसी ने `थेंक्यु` तक नहीं कहा..!!
( ये बात और है की, उस वक़्त, श्रीसुभाषचंद्राजी ने, रेलवे स्टेडियम पर, गाय-भैंस को, बचा कूचा हुआ चारा चरते हुए पाया था?)
सोचो अगर, रेलवे जैसी महा मुनाफ़ा करनेवाली सरकारी संस्था के पास, सुविधाओं के नाम पर, क्रिकेट स्टेडियम का ऐसा हाल है तब, दूसरे खेलों के स्टेडियम्स का, क्या हाल होगा, सब लोग जानते हैं..!!
शायद, सभी खेलों के लिए, देश में आधुनिक सुविधा मुहैया जब कराई जायेगी, उस समय तक, कई आशास्पद, उगते खिलाड़ीओं के बारे में, यही कहने की नौबत आ जायेगी की,`गढ़ आला पर सिंह गेला..!!`
दोस्त माही,सच कहना, हिंदुस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान बनने से पहले, खुद तुम्हें खेलने के लिए कितनी सरकारी सुविधा मुहैया कराई गई थीं? शायद..०,०..!!
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तुमने साक्षात्कार में ओर, यह भी कहा की," हमें लगातार प्रोत्साहित करने के लिए, मैं सारे देशवासीओं का शुक्रिया अदा करता हूँ ।"
माही, हमें मज़ाक पसंद नहीं है और ऐसे मज़ाकिया स्टेटमेन्ट्स कतई कबूल नहीं है..!! हम विद्वान, गुणवान, कदरदान, नादान क्रिकेट प्रेमी ब्लॉगर्स, तुम्हारी ऐसी मज़ाक की घोर निंदा करते हैं, क्योंकि..!!
अगर, तुम्हारी सारी बातों के साथ हम सहमत हो गये तो, सभी देशवासीओं के `जश्न -ए- जुलूस` में हमारे साथ, मलिन इरादे वाले कुछ गिने चूने भ्रष्ट गधे भी, `बाप` बन कर,अपने चारों पैरों को उछालते हुए, `होंची..होंची..होंची`, का बेसुरा राग छेड़ कर, सारा माहौल सरकारी-तरकारी मार्केट (संसद?) जैसा बना देंगे..!!
ठीक है..!! आज तक, हम ऐसे गधों को बरदाश्त कर रहे हैं, पर अब उनकी गद्धा-लातों से, ज़ख्मी होने के लिए हम तैयार नहीं है..!!
माही, आइन्दा किसी से भी, अगले साक्षात्कार के समय, हम सब ब्लॉगर्स की यह अमूल्य नसीहत को ध्यान में रखना और कुछ अनाप-सनाप जवाब देने से पहले सौ बार सोचना, वर्ना..!!
हम `ऑल इंडिया` के सारे नसीहतबाज, उत्साहयुक्त ब्लॉगर्स, सभी क्रिकेटर्स के ब्लॉग पर आकर,अपने मन की सारी भड़ास निकाल कर, ऐसी-ऐसी टिप्पणियां करेंगे की, आप सब लोग ब्लॉगिंग करना तो क्या, क्रिकेट खेलना भी छोड़ देंगे..!!
अंत में, हम सभी ब्लॉगर्स, देश के सभी, विद्वान और बुद्धिजीवी महानुभव से, यही कहना चाहते हैं की,
" एवमेतध्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरूषोत्तम ॥३॥"
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरूषोत्तम ॥३॥"
"विश्व रुप दर्शन योग-अध्याय-११- श्रीमद्भागवत गीतापुराण "
मित्र माही, हम जीत के आनंद को अपनी कटु वाणी से कलुषित करना नहीं चाहते थे,मगर क्या करें? कोई सुननेवाला नहीं है..!!
हम तो बस इतना ही चाहते हैं की, श्रीमद्भागवत गीतापुराण में, धनुर्धर अर्जुन को विषाद योग से मुक्ति दिलाकर, भगवान श्रीकृष्णने जैसे अर्जुन को विजयपथ पर प्रेरित किया था, इसी तरह, किसी ग़रीब आदिवासी या समाज के पिछड़े दलित परिवार के संतान को, ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, वीर्य और तेज युक्त, साक्षात ईश्वर रुप रमतवीर के,`विश्व रुप` का हम दर्शन करना चाहते हैं ।
दोस्तों, अब क्या करें?
चलो, कोई दिक्क़त नहींजी..!!
अगले क्रिकेट वर्ल्ड कप के आने तक, प्रतीक्षा करें..!! ओर क्या?
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`ANY COMMENT`
मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०३-०३-२०११.
`ANY COMMENT`
मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०३-०३-२०११.
बढ़िया ...वर्ल्ड कप घर आने और नवसंवत्सर की शुभकामनायें....
ReplyDeleteरवीन्द्र चौहान ने कहा…
ReplyDeleteअगर, तुम्हारी सारी बातों के साथ हम सहमत हो गये तो, सभी देशवासीओं के `जश्न -ए- जुलूस` में हमारे साथ, मलिन इरादे वाले कुछ गिने चूने भ्रष्ट गधे भी, `बाप` बन कर,अपने चारों पैरों को उछालते हुए, `होंची..होंची..होंची`, का बेसुरा राग छेड़ कर, सारा माहौल सरकारी-तरकारी मार्केट (संसद?) जैसा बना देंगे..!!
हा हा हा , बढ़िया
४ अप्रैल २०११ ९:५८ पूर्वाह्न
मार्क भाई अंत में आपने अतिबौद्धिक ब्लॉगर जमात का पोपट ही कर दिया ये लिख कर कि जिसे व्यंग न समझ आए वो टिप्पणी न करे इससे आपके मन को गहरी ठेस पहुंचती है ;)
ReplyDeletereally too much कर डाला आपने तो....
जय जय भड़ास
प्रिय डॉ.श्रीरूपेश श्रीवास्तवसाहब,
ReplyDeleteनमस्कार,
मैं ऐसा लिखने के लिए क्षमा याचना करता हूँ, पर ऐसा लिखने पर मैं मजबूर था । मैं क्या करुं?
ज़रा, सोचें, आप के व्यवसाय के बारे में अगर आपने कोई उम्दा विचार व्यक्त किए हों, और कोई आकर बिना कुछ सोचे-समझे, आप की पोस्ट का सारा संदर्भ न लेते हुए सिर्फ इक्का-दुक्का शब्द पर आपत्ति जताकर, आप को टिप्पणी की आज़ादी के नाम पर नसीहत पर नसीहत देने लगें, ऐसे में ख़ास नम्र अनुरोध के अलावा, कोई क्या करें? (हाँ, मैंने वह एसोसिएशन ही छोड़ दिया..!!)
मेरे `थेंक्स पाकिस्तान` लेख का, कुछ जमादारी करनेवाली यंग मगर, पुरानी आदरणीय ब्लॉगर महिलाओं ने बिना समझे इक्का-दुक्का शब्द पर आपत्ति जताकर, मुझे नसीहत दे कर बुरा हाल कर दिया था ।
मैं पिछले, ४५ साल से लिख रहा हूँ फिर भी, आज भी विद्यार्थी ही हूँ । नकारात्मक पर विद्वत्तपूर्ण टिप्पणी सार्थक होती है, पर `मैं ऐसा सोचती/सोचता हूँ,इसलिए आपको ऐसा ही लिखना चाहिए` ऐसी टिप्पणी अगर कोई न करे तो ही बेहतर होता है ।
आपकी कुशल-मंगल की शुभकामना के साथ,
मार्कण्ड दवे ।
mktvfilms
अच्छा लिखा है. बधाई
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग भी देखें
अब पढ़ें, महिलाओं ने पुरुषों के बारे में क्या कहा?
बंटी "द मास्टर स्ट्रोक" ने कहा…
ReplyDeleteश्रीसुभाषचंद्राजी की, ICL (इंडियन क्रिकेट लीग) को टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए, BCCI के मना करने के बाद, Bihar Cricket Association (BCA-1935) के प्रेसिडन्ट श्रीलालुप्रसादजीने, जब वह रेल मंत्री थे तब देश के सारे रेलवे स्टेडियम की सुविधा ICL को देने की उदारता जताई थी ना? उनको तो किसी ने `थेंक्यु` तक नहीं कहा..!!
( ये बात और है की, उस वक़्त, श्रीसुभाषचंद्राजी ने, रेलवे स्टेडियम पर, गाय-भैंस को, बचा कूचा हुआ चारा चरते हुए पाया था?)
वाह वाह क्या बढ़िया लिखा है ,
क्या हमे भी इस ब्लॉग कि सदस्यता मिल सकती है
डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा…
ReplyDeleteअच्छा लगा ।
४ अप्रैल २०११ ३:२८ अपराह्न
मनोज कुमार ने कहा…
ReplyDeleteरोचक, मज़ेदार!
४ अप्रैल २०११ ५:५७ अपराह्न
बिग बॉस ने कहा…
ReplyDeleteबहुत सुंदर,
पर कही कही सिर के ऊपर से उतार गया
४ अप्रैल २०११ ९:१६ अपराह्न