Tuesday, March 1, 2011

क्षतविक्षत पंख।

क्षतविक्षत पंख।
(courtesy-Google images)

मुरझाये  पत्ते  पेड़ से गिरे  ज़मीन  पर, करवट बदल कर ।
फुसफुसाई  ज़िंदगी, मिला  क्या  तुझे, सरपट 
यूँ चल कर ।  

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आज सुबह, मेरे घर के बरामदे में, झूले पर झूलते हुए, अखबार पर नज़रें गड़ाये, बड़े आराम से, मैं चाय पी रहा था । अपनी ही अनंत यात्रा से परेशान रात, मानो अपनी थकान दूर कर रही थी , साथ में मेरी नींद भी..!! इतने में ही मेरी नज़र कुछ देखकर, बस वही गड़ गई । मेरी नज़र के सामने जो दृश्य था, वह देखकर मेरा आंतरिक निरिक्षक अचानक जागृत हो गया।

मैंने देखा, एक चिड़िया का नन्हा सा बच्चा, मेरी बगल से निकलकर फड़फड़ाता हुआ, ज़मीन पर रेंगता हुआ, उपर खुले आसमान की ओर उड़ान भरना सीख रहा था। मेरे घर के बरामदे के बड़े से पेड़ की डाली से चिड़िया माँ, बार-बार उड़ती हुई नीचे ज़मीन पर आती और अपने बच्चे को प्रोत्साहित करती थी। मानो उसकी माँ चिड़िया, अपने बच्चे को उड़ने की क्रिया में विफल होता देखकर, बार बार उसे उड़ने का सही तरीका सीखा रही थी। अपने बच्चे को सीखाने का उस चिड़िया माँ का जोश एवं उत्साह अवर्णनीय था ।

थोड़ी देर के बाद यह नन्हासा बच्चा, वह पेड़ की डाली तक पहुंचने में कामयाब होने ही वाला था इतने में हीं...!! हाय रे किस्मत..!! कहीं से कोई हिन्दी फिल्म के विलन की भाँति, एक बड़ा सा ख़ूँख़ार बिल्ला, कहीं से आ धमका और वह नन्हे से चिड़िया के बच्चे को अपने तिक्ष्ण दांतोंमें दबाकर ले भागा।

मैं अपनी जगह पर सन् रह गया। यह घटना इतनी जल्दबाजी में घटी की मुझे संभलने का मौका तक न मिला। वह बिल्ले के मुँह से ज़मीन पर गिरे हुए, अपने प्राण से भी प्यारे बच्चे के बिखरे हुए पंख के अवशेष देखकर, चिड़िया माँ लाचारी महसूस करती हुई, ज़ोर-ज़ोर से आक्रंद करने लगी ।

यह कारूण्य से भरा दृश्य देख कर, ताज़ा अखबार और चाय, दोनों मेरे  लीये मानो कड़वें हो गये।  हवा में अपने कारुण्यसभर आक्रंद के सुरों को बिखेर कर, चिड़िया माँ वह शैतान बिल्ले को ढूंढने उसके पीछे उड़ गई।

मैं  मानता हूँ की नियति के आगे हम सब लाचार है, मगर यह घटना के बाद चिंतन करने से मुझे लग रहा है की हम भी अपने बच्चों को, बच्चे का जन्म होते ही, उसे आसमान में ऊँचे उड़ने के ख़्वाब तो दिखाते हैं मगर उसे आपत्ति का सामना करने, या फिर संसार में छिपे शैतान से बचना सीखाना भूल जाते हैं। परिणाम स्वरूप, हमारी नज़रों के सामने हम अपने प्राणसे भी अधिक प्यारे बच्चे की विफलता देखकर उस पर अपनी अपेक्षाओं का बोझ लाद देते हैं।


मेरे विचारों के समर्थन में, मानो अनायास ही अखबार में भी ऐसे ही समाचार छपे हुए थे।

* बारहवीं कक्षा की एक छात्रा ने फेल होने के डर से आत्महत्या कर ली थी, पर आज उसका जब रिजल्ट आया तब पता चला की छात्रा को  ७५% अंक प्राप्त हुए थे।

* मेरे मन में सवाल उठा है, क्या हम अपने बच्चों को जीवन विकास की सही तालीम दे पाते हैं?

* क्या सफलता और विफलता दोनों परिस्थिति को झेलने का सही तरीका हम अपने बच्चों को सिखाते हैं?

* उससे भी अहम सवाल यह है की,जो बच्चें अनाथ होते हैं, फुटपाथ पर पलते हैं और वहीं दम तोड़ने हैं, उनको कौन सी चिड़िया माँ आसमान के ख़्वाब दिखाती होगी?

* या फिर ऐसे अनाथ बच्चों को कौन शैतान ख़ूँख़ार बिल्लों से बचाने के लिए आता होगा?

अगर आप मेरे यह चिंतन से सहमत है तो, ऐसे अनाथ बच्चों की क्या दुर्गति होती होगी उसका एक वीडियो अपनी आँखो से खुद देख लीजिए, शायद आप का ऋजु मन भी, मेरी तरह, उस चिड़िया माँ की तरह आक्रंद कर उठे..!!

http://www.ted.com/talks/sunitha_krishnan_tedindia.html

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"ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवे. दिनांकः-  ०१ - मार्च -२०११.

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