Friday, September 28, 2012

ज़िंदगी से शिकवा । (गीत)



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ज़िंदगी से शिकवा । (गीत)



अय  ज़िंदगी, तुं  ही  बता, शिकवा  करें  भी  तो  क्या  करें..!

गले   लगाई   है   मर्ज़ी   से,   अब  करें  भी  तो  क्या  करें..!


(शिकवा= शिकायत)


अंतरा-१.


मज़ा, ख़ता, सज़ा, क़ज़ा, क्या-क्या  भर  लाई   है  दामन  में..!

ये   तो   बता,  इन   सबों  का  हम,  करें   भी   तो   क्या  करें..!

अय  ज़िंदगी,  तुं   ही   बता, शिकवा  करें  भी  तो  क्या  करें..!


(क़ज़ा=नसीब)


अंतरा-२.


ग़म   गीला, दम   पीला, कब तक  चलेगा   ये  सिलसिला..!

तंग आ  चुके   इन  नख़रों  से, पर  करें  भी  तो  क्या   करें..!

अय  ज़िंदगी, तुं  ही  बता, शिकवा  करें  भी  तो  क्या  करें..!


अंतरा-३.


क्या  पाया, क्या खोया, समझा  जो  मेरा, वही   लुट  गया..!

अब,  तुझ  पर  हम  नाज़,  गर   करें   भी   तो   क्या   करें..!

अय  ज़िंदगी, तुं  ही  बता, शिकवा  करें  भी  तो  क्या  करें..!


(नाज़= गर्व)


अंतरा-४.


आना-जाना,   उठना - गिरना,   या  रब,  अब   और   नहीं..!

पर, बड़ी  ज़िद्दी  है  ये,   उसका   करें   भी   तो   क्या   करें..!

अय  ज़िंदगी, तुं  ही  बता, शिकवा  करें  भी  तो  क्या  करें..!


मार्कण्ड दवे । दिनांकः २८-०९-२०१२.

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