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दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)
चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
प्यार भरी सोच के, नरम पापोश पहन कर जाते हैं..!
( पापोश= जूते)
अंतरा-१.
आदत है उसे कहीं भी, दबे पाँव धूमने की मगर..!
दबे पाँव चल कर चल, हम उसकी नकल कर आते हैं..!
चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
अंतरा-२.
ओ रे मन, कोमल सतह पर, तुम पाँव धरना सँभल कर..!
चल, क़दमों के निशान हम भी, अब सकल कर आते हैं..!
चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
(निशान सकल करना= कोने-कोने में छाप छोड़ना)
अंतरा-३.
भोलेभाले दिल से, सयाने मन का मुक़ाबला ही क्या ?
चल, उसके भोलेपन का, आज हम अदल कर आते हैं..!
चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
(सयाना= चालाक; अदल= इन्साफ,न्याय )
अंतरा-४.
दहशत है, छत पर कहीं, दर्द कि परतें न जम गई हो..!
गर दर्द है भी तो, एतबारी सफ़ल कर आते हैं..!
चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
( एतबारी सफ़ल करना= किसी पर विश्वसनीयता कायम रखना)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९-०९-२०१२.
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