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नेताजी, ऐसा क्यूँ होता है ? (व्यंग गीत)
ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
ऐसा क्यूँ होता है? ठंडे चूल्हे, खाली थाली, पापी पेट पर, इतना बलात्कार..!
अंतरा-१.
नेताजी, लाल-पीली चौपहिया में या फिर, हवा में टहलो सारी दुनिया, मगर..!
ऐसा क्यूँ होता है ? आजकल आम आदमी, दो पहिये का भी ना रहा हक़दार..!
ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
अंतरा-२.
नेताजी, धनभंडार से घर आप का भरा, धानभंडार में अनाज है सड़ा हुआ..!
ऐसा क्यूँ होता है? आजकल ज़िंदगी का भी जीना, हो गया इतना दुश्वार..!
ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
अंतरा-३.
नेताजी, सब के बीवी-बच्चे होते हैं, जिद्द के भी पक्के होते हैं, अब कहिए..!
ऐसा क्यूँ होता है? रोज़, मन मार कर, हम उन्हें फुसलाते रहें लगातार..!
ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
अंतरा-४.
नेताजी, अपसेट मत होना, ज़रा हमें भी `कसाब`के साथ सेट करा दीजिए ना..!
ऐसा क्यूँ लगता है? हम से ज्यादा मानो,`कसाब`पर उमड़ रहा है आप का प्यार..!
ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
मार्कण्ड दवे । दिनांकः१५-०९-२०१२.
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