पेट की सलवटें । (गीत)
चल, पेट की सलवटें, मिटाने की कोशिश करें ।
हाँ, इक नए नेता की, फिर आज़माइश करें ।
अन्तरा-१.
गरीबी का बुखार है, फकीरी का खुमार भी..!
चल, कड़ी भूख की फिर से फरमाइश करें ।
हाँ, इक नए नेता की, फिर आज़माइश करें ।
अन्तरा-२.
सुना है, ज़हर की खेती होती है देश में..!
चल, भीख में राशन की फिर गुजारिश करें ।
हाँ, इक नए नेता की, फिर आज़माइश करें ।
अन्तरा-३.
बच्चों की कसम है बाबू, अब वह रोते नहीं..!
चंद सांसों के लिए, क्यों न फिर सिफारिश करें ?
हाँ, इक नए नेता की, फिर आज़माइश करें ।
अन्तरा-३.
या रब, देख रहा है ना सब? कह दे उन्हें...!
इक बार फिर, हसीं वादों की तेज बारिश करें ।
हाँ, इक नए नेता की, फिर आज़माइश करें ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक - १९-०३-२०१४.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
Thanks Shri Dilabag Virk sahab.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-03-2014) को "इन्द्रधनुषी माहौल: चर्चा मंच-1560" (चर्चा अंक-1560) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
अभिलेख द्विवेदी
Thanks a lot. shri Abhilekh sir,
Deleteवाह !
ReplyDeleteThanks, Shri Joshi sahab.
Deleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteTHANKS, SHRI ONKAR JI,
ReplyDeleteकुछ फर्क तो होता नहीं, नस्ल एक ही है।
ReplyDeleteक्या ख़ाक इन नेताओं की आज़माइश करें।।