Wednesday, March 19, 2014

पेट की सलवटें । (गीत)

पेट की सलवटें । (गीत)

चल, पेट की  सलवटें, मिटाने की  कोशिश करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की,  फिर  आज़माइश करें ।

अन्तरा-१.

गरीबी  का  बुखार है, फकीरी  का खुमार भी..!
चल, कड़ी  भूख  की  फिर  से  फरमाइश  करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।  

अन्तरा-२.

सुना   है,  ज़हर  की  खेती  होती  है  देश  में..!
चल, भीख में राशन की  फिर  गुजारिश  करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश करें ।  

अन्तरा-३.

बच्चों  की  कसम  है  बाबू, अब वह रोते  नहीं..!
चंद  सांसों के लिए, क्यों न फिर सिफारिश करें ?
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।  
अन्तरा-३.

या रब, देख  रहा  है  ना  सब? कह  दे  उन्हें...!
इक बार फिर, हसीं वादों की  तेज बारिश करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - १९-०३-२०१४.



9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-03-2014) को "इन्द्रधनुषी माहौल: चर्चा मंच-1560" (चर्चा अंक-1560) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    अभिलेख द्विवेदी

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  3. सुन्दर कविता

    ReplyDelete
  4. कुछ फर्क तो होता नहीं, नस्ल एक ही है।
    क्या ख़ाक इन नेताओं की आज़माइश करें।।

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