हाथ की लकीरें । (गीत)
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो गई..!
जिंदगी पल - पल जैसे, रूमानी हो गई ।
रूहानी= आध्यात्मिक; रूमानी=रोमांच पैदा करने वाली
अन्तरा-१.
कहती है फ़ितरत, बारबार मुझे कि देख..!
दास्तां- ए -मुहब्बत बदगुमानी हो गई..!
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो गई..!
फ़ितरत= स्वभाव, प्रकृति; बदगुमानी=गलतफहमी
अन्तरा-२.
अभी तो जवाँ होने लगी थी मुहब्बत कि..!
तवारीख़ के चंद पन्नों पर कहानी हो गई..!
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो गई..!
तवारीख़=इतिहास
अन्तरा-३.
सुना हैं, मेरी शख्सियत मिज़ाजी हो गई..!
देख लो, दुनिया कितनी सयानी हो गई..!
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो गई..!
शख्सियत=व्यक्तित्व; मिज़ाजी=चिड़चिड़ेपन का दौरा,
सयानी=चालाक ।
अन्तरा-४.
धुन्धली डगर, अजान सफर, बेजान नज़र?
यही बात मेरे होने की निशानी हो गई?
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो गई..!
अजान=अपरिचित ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक - २६/०३/२०१४.
शानदार अभिव्यक्ति......
ReplyDeleteThanks a Lot Shri Abhishek ji.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-03-2014) को "कितने एहसास, कितने ख़याल": चर्चा मंच: चर्चा अंक 1567 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
अभिलेख द्विवेदी
Thanks a lot -Dhanyavad Shri Abhilekh ji.
Deleteबढ़िया गीत व अच्छा लेखन मार्कंड सर , धन्यवाद व स्वागत है , मेरे लिंक पे !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )