सियासत के रंग ।(गीत)
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
अवाम से ज्यादा जहाँ, नेता गरीब होते हैं ।
अन्तरा-१.
यहाँ - वहाँ, जहाँ - तहाँ, मिले जाने कहाँ - कहाँ..!
कलेजा कतरने वालों के हज़ार मुरीद होते हैं..!
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
मुरीद= अनुयायी
अन्तरा-२.
पेट में दहकते शोले, खेत में चहकते निवाले..!
मुँह तक आते-आते, सिर्फ वादे करीब होते है ?
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
अन्तरा-३.
सियासी कूड़ेदान में तलाशे सुकून मगर..!
शान से पाले अरमान, कायम रकीब होते हैं..!
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
कूड़ादान= डस्टबीन; रक़ीब = शत्रु, दुश्मन, वैरी,
अन्तरा-४.
जूझते रहो, तुम घुटते रहो, बस लूटते रहो..!
दुनिया में सब के, अपने-अपने नसीब होते हैं ।
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
घुटन=बेचैनी
अन्तरा-५.
`नेताजी, तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ है..!`
चीखने वाले सारे, हराम - हबीब होते हैं ।
ये सियासत के रंग भी बड़े अजीब होते हैं..!
हराम=छल-कपट,बदनीयत; हबीब = दोस्त,मित्र ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक - ३१-०३-२०१४.
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