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नाज़ुक दिल । (गीत)
नाज़ुक दिल तोड़ने का, उसे भी अहसास था ।
वो ज़ालिम यहीं - कहीं, मेरे ही आसपास था ।
अंतरा-१.
अश्क, आह, जुनून, इश्क से उसे क्या वास्ता..!
हर बेमानी लफ़्ज़, उन क़दमों का दास था ।
वो ज़ालिम यहीं - कहीं, मेरे ही आसपास था ।
(अश्क=आंसु; ल़फ्ज़=शब्द )
अंतरा-२.
क्या कहें उसे, हम ही थे बिकने को तैयार ..!
फिर उसका ख़ुद का भी तो बड़ा सा नख़ास था ।
वो ज़ालिम यहीं - कहीं, मेरे ही आसपास था ।
( नख़ास= पशु बाज़ार = नासमझ आशिक बाज़ा२)
अंतरा-३.
गहराने को रुज, सलाक बहुत थे उसके पास ।
ये भी है कि उसका इल्म, अंदाज़ कुछ खास था ।
वो ज़ालिम यहीं - कहीं, मेरे ही आसपास था ।
(रुज=ज़ख़्म; सलाक=तीर; इल्म=जानकारी; अंदाज़=तरीक़ा)
अंतरा-४.
ज़ख़्मी दिल कहाँ देखेगा ख़्वाब रौशनी का..!
शशिज का मेरा चाँद तो, सियाही अमास था ।
वो ज़ालिम यहीं - कहीं, मेरे ही आसपास था ।
(शशिज=पूनम; सियाही=काली )
मार्कण्ड दवे । दिनांकः१६-०८-२०१२.
बहुत ही सुंदरता से अभिव्यक्त किया है आपने नाजुक दिल को.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति के लिए आभार् जी.