Thursday, August 11, 2016

जलते चिराग़ ।

ज़िंदगी यूँ ही रौशन हो जाती नहीं, इस जहान में,
पहले, जलते हैं  कई चिराग़, तेज़ रौशनी के लिए...!


चिराग़ = मददगार; (माता-पिता,रिश्तेदार,दोस्त-संगीसाथी);  
रौशनी = प्रगति,विकास;

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०९ अगस्त २०१६.


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