इज़हार-ए-इश्क बिना शाम हो गई..!
हसरतों की जैसे कत्लेआम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क = प्यार की अभिव्यक्ति;
हसरत=अभिलाषा;
१.
निगाहों में प्यार, ज़ुबान से इनकार ?
रुसवाईयाँ शायद, बेलगाम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क बिना शाम हो गई..!
२.
लरजते लबों ने कह दिया था सबकुछ ?
और खामोशी, मुफ्त बदनाम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क बिना शाम हो गई..!
लरजना-काँपना; लब=होंठ;
३.
बेबस हैं वो तो, मजबूर इधर हम भी?
सिसकीयाँ ये कैसी, खुलेआम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क बिना शाम हो गई..!
सिसकी=रोने का शब्द;
४.
न रस्में, न कसमें, न वश में हमारे..!
ये जिंदगी बस जैसे, इलज़ाम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क बिना शाम हो गई..!
रस्म- विधि;
मार्कण्ड दवे ।
दिनांकः १४-०५-२०१४.
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