ढूंढ़ता हूँ । (गीत)
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में ढूंढ़ता हूँ ।
न मिले फिर मैं, अपने बहानों में ढूंढ़ता हूँ ।
दिल-ए-सुकून = चैन, क़रार;
१.
थका-हारा नज़र आता, मुहब्बत का कारवाँ..!
अब राह-ए-उलफ़त के निशानों में ढूंढ़ता हूँ ।
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में ढूंढ़ता हूँ ।
राह-ए-उलफ़त = दोस्ती का मार्ग;
२.
बेज़ार ज़िंदगी से यूँ , दुश्मनी मोल कर..!
आसूदगी की इल्मी, किताबों में ढूंढ़ता हूँ ।
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में ढूंढ़ता हूँ ।
बेज़ार = असंतुष्ट; आसूदगी = खुशहाली; इल्म = ज्ञान,कला;
३.
दिल थाम के खड़ा हूँ, क़यामत की कतार में..!
दिल थाम के खड़ा हूँ, क़यामत की कतार में..!
इक मेहरबाँ की खुश्क निगाहों में ढूंढ़ता हूँ ।
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में ढूंढ़ता हूँ ।
क़यामत = विनाश; खुश्क = अरसिक;
४.
भीतर के अंधेरे को, चिराग़ों की है तलाश..!
तभी इबादत-खानों की, अज़ानों में ढूंढ़ता हूँ ।
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में ढूंढ़ता हूँ ।
अजान = बाँग
मार्कण्ड दवे ।
दिनांकः ०२-०५-२०१४.
बहुत सुंदर !
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