कमबख़्त मुहब्बत । (गीत)
कमबख़्त मुहब्बत जवाँ होने का नाम नहीं लेती..!
और एक वो है, जो दिल से कोई काम नहीं लेती..!
अंतरा-१.
क्या-क्या नहीं करते दिलबर, सनम को लुभाने को..!
एक वो है जो, हाले दिल तक खुले आम नहीं करती..!
कमबख़्त मुहब्बत जवाँ होने का नाम नहीं लेती..!
(खुले आम= अभिव्यक्त)
अंतरा-२.
शरमा के यूँ नज़रें झुकाना, प्यार नहीं तो क्या है ?
फिर वो तो, नज़रों को ज़रा भी आराम नहीं देती..!
कमबख़्त मुहब्बत जवाँ होने का नाम नहीं लेती..!
अंतरा-३.
दोस्तों, कोई करें भी तो क्या करे, कैसे माँगे दिल..!
करारी शिकस्त पर तंगदिल, कोई इनाम नहीं देती ।
कमबख़्त मुहब्बत जवाँ होने का नाम नहीं लेती..!
(तंगदिल= कंजूस)
अंतरा-४.
थका-थका सा प्यार, बुझा-बुझा सा इक़रार लगता है..!
अब तो, सलाम के बदले भी, वो सलाम नहीं करती..!
कमबख़्त मुहब्बत जवाँ होने का नाम नहीं लेती..!
(बुझा-बुझा सा= रूखा)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः०८-०९-२०१२.
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