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पैदाइशी बीमार आशिक..! (गीत)
नाकामयाब मुहब्बतों की, यही तो चीख़ पुकार है..!
क्यों, उनके सारे यार मानो, पैदाइशी बीमार है ..!
(चीख़ पुकार=आर्तनाद करना)
अंतरा-१.
हैरत ये नहीं कि, चाहत का नशा चरम पर क्यों है..!
हैरत ये है कि, सारे आशिक, तबाही के तीर पर है..!
नाकामयाब मुहब्बतों की, यही तो चीख़ पुकार है..!
(चरम= पराकाष्ठा; तबाही के तीर= बरबादी की अंतिम हद )
अंतरा-२.
प्यार, वफ़ा, कुर्रत, कसम, कुरबानी, जैसे कई लफ़्ज़..!
क्या मायने उनके जब, रिश्ते ही नाकाम, बेज़ार है..!
नाकामयाब मुहब्बतों की, यही तो चीख़ पुकार है..!
(कुर्रत= खुशी; मायने= महत्व; बेज़ार= उबाऊ, उचाटू)
अंतरा-३.
मायूसी कि दाज में, उम्मीद के उजाले भर मुआलिज ।
तड़प रहा है इश्क उसे, पहले से भी तेज़ बुख़ार है..!
नाकामयाब मुहब्बतों की, यही तो चीख़ पुकार है..!
(मायूसी= निराशा; दाज= अँधेरी रात; मुआलिज= डॉक्टर)
अंतरा-४.
प्यार का ख़ून करने चला है, ये वहशी ज़माना, पर..!
वो बच जाएगा, उस पर मेरे, अँसुवन का ख़ुमार है ।
नाकामयाब मुहब्बतों की, यही तो चीख़ पुकार है..!
(वहशी=ज़ालिम; अँसुवन= आँसू; ख़ुमार= नशा)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०४-०९-२०१२.
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