(The Show Must Go on.)
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अन्जान हूँ मैं । (गीत)
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
उसकी सहर मिटाने को, बहुत बे-उनमान हूँ मैं ।
(सहर= मायाजाल; बे-उनमान =सामर्थ्यहीन)
अंतरा-१.
अनचाहे ग़मों से भर गया है, कूड़ादान दिल का..!
ग़म भी है इतने, सब की नज़र में धनवान हूँ मैं..!
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
(कूड़ादान= कचरा डालने का डिब्बा)
अंतरा-२.
ज़िदगी कुछ इस क़दर व्यस्त कर दी ज़मानेभर ने..!
कि मेरे ही दिल के बंद अलार से, पशेमान हूँ मैं ।
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
(बंद अलार= हृदयहीनता; पशेमान= दुःखी,शर्मिंदा)
अंतरा-३.
कैसे, क्या और क्यों लिखूँ मैं फ़लसफ़ा मेरा ?
जब की खुरदरी, कोरी क़िताब का बे-उनवान हूँ मैं..!
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
(फ़लसफ़ा= दृष्टिकोण; खुरदरी= कष्टदायक; कोरी क़िताब = नाकाम ज़िंदगी; बे-उनवान = अनामी शिर्षक)
अंतरा-४.
साँसों के शोरोगुल से निजात पाऊँ तो कैसे?
खुद अपने आप से, अभी तक, अनजान हूँ मैं ।
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
(शोरोगुल= कोलाहल; निजात= छुटकारा )
मार्कण्ड दवे । दिनांकः२७-०८-२०१२.
sundar hai , badhayi
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल । कोलाहल यूं ही परेशान करता है ...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना
ReplyDelete:-)
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
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