Monday, August 27, 2012

अन्जान हूँ मैं । (गीत)


(The Show Must Go on.)


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अन्जान  हूँ   मैं । (गीत)





साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

उसकी  सहर   मिटाने   को,  बहुत   बे-उनमान  हूँ   मैं ।

(सहर= मायाजाल; बे-उनमान =सामर्थ्यहीन) 


अंतरा-१.


अनचाहे  ग़मों  से  भर  गया  है,   कूड़ादान   दिल   का..!

ग़म  भी  है इतने,  सब  की   नज़र  में  धनवान  हूँ   मैं..!

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(कूड़ादान= कचरा डालने का डिब्बा) 


अंतरा-२.


ज़िदगी  कुछ  इस  क़दर  व्यस्त कर दी  ज़मानेभर ने..!

कि  मेरे  ही  दिल  के  बंद  अलार  से, पशेमान  हूँ   मैं ।

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(बंद अलार= हृदयहीनता; पशेमान=  दुःखी,शर्मिंदा)


अंतरा-३.


कैसे,  क्या  और   क्यों   लिखूँ     मैं     फ़लसफ़ा   मेरा ?

जब  की  खुरदरी, कोरी  क़िताब  का  बे-उनवान  हूँ  मैं..!

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(फ़लसफ़ा= दृष्टिकोण; खुरदरी= कष्टदायक; कोरी   क़िताब = नाकाम ज़िंदगी; बे-उनवान = अनामी शिर्षक)


अंतरा-४.


साँसों   के   शोरोगुल   से   निजात   पाऊँ   तो    कैसे?

खुद   अपने   आप   से,  अभी  तक, अनजान   हूँ   मैं ।

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(शोरोगुल= कोलाहल; निजात= छुटकारा )

मार्कण्ड दवे । दिनांकः२७-०८-२०१२.

4 comments:

  1. बहुत खूबसूरत गज़ल । कोलाहल यूं ही परेशान करता है ...

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  2. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

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