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बेक़रार दिल । (गीत)
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
किसीने कह दिया उसे, उनको हम से प्यार है ..!
अंतरा-१.
आगाह किया था उसे, कई जहाँदीदा यारों ने ।
न कश्ती, न पतवार,फिर क्यूँ, तरंत का तलबगार है ?
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
(आगाह=सूचित; जहाँदीदा= अनुभवी; तरंत= समंदर; तलबगार= इच्छुक । )
अंतरा-२.
न आग़ाज़ का पता है उसे, न अन्जाम का पता..!
तब भी, कुछ कर गुज़रने की सनक धुँआँधार है ।
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
(आग़ाज़= आरंभ; अन्जाम= नतीजा; सनक= जुनून)
अंतरा-३.
न धुआँ, न आग, न जलन का अहसास, फिर भी..!
उसे अंगारों पर चलने का शौक, बेशुमार है ।
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
अंतरा- ४.
न कभी सुनी है, न कभी सुनेगा वो, दीवाना है ।
फिर,हर मासूम दिल की, फ़ितरत ही ग़मख़्वार है..!
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
(फ़ितरत= स्वभाव; ग़मख़्वार= सहनशील)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः २२-०८-२०१२.
वाह! बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteआपके गीत ने मग्न कर दिया है,दवे जी.
शुभकामनाएँ.
बेहद सुंदर
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