(Google Images)
किसीने छेड़ा यूँ ही ज़िक्र तेरा, तुम याद आ गए ।
कुछ महक रहा है दिल में फिर से, बस तुम याद आ गए ।
अंतरा-१.
दो सांसो का घुलमिल जाना, वो अधर मघुरस झरना ।
मधुरस ने घूँघट फिर उकसाया, बस तुम याद आ गए ।
किसी ने छेड़ा यूँ ही ज़िक्र तेरा, तुम याद आ गए ।
(उकसाना = उठाना)
अंतरा-२.
खिला-खिला सा चेहरा और वो तिरछी नज़र का पहरा ।
कनखियोँ से फिर किसी ने देखा, बस तुम याद आ गये ।
किसी ने छेड़ा यूँ ही ज़िक्र तेरा, तुम याद आ गए ।
(कनखियोँ से देखना=निगाहेँ बचा कर देखना)
अंतरा-३.
इस जहाँ की तुम नहीं थीं, शायद आसमाँ की परी थी..!
उगते चाँद ने फिर दिल को छूआ,बस तुम याद आ गये ।
किसी ने छेड़ा यूँ ही ज़िक्र तेरा, तुम याद आ गए ।
अंतरा-४.
बात नहीं जज़बातों में, औकात नहीं इन सांसो में ।
रूठ चाँद से अभी-अभी खग टूटा, बस तुम याद आ गए ।
किसी ने छेड़ा यूँ ही ज़िक्र तेरा, तुम याद आ गए ।
(जज़बात=मनोभाव; औक़ात=सामर्थ्य शक्ति; खग=तारा)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः १३-०८-२०१२.
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.