चिथड़ा-चिथड़ा सा कफ़न ।
(व्यंग गीत ।)
सड़े - गले भ्रष्ट नेता और मेरे मुन्ने की अम्मा,
जैसे ही एक और सवेरा हुआ ? सब याद आ गए..!!
अंतरा-१.
संसद का गला फाड़ निकम्मा, घर में मुन्ने की अम्मा,
जैसे ही थैला राशन का पकड़ा, सब याद आ गए..!!
जैसे ही एक और सवेरा हुआ ? सब याद आ गए..!!
अंतरा-२.
मेरा कटा हुआ पॉकेट, बीबी का बिका हुआ लॉकेट,
जैसे ही मैंने ,जेब में हाथ ड़ाला ? सब याद आ गए..!!
जैसे ही एक और सवेरा हुआ ? सब याद आ गए..!!
अंतरा-३.
कैसे समझाऊँ महँगाई का फंडा, मुन्ने की अम्मा को ?
रात को दोनों, सो गये थे भूखे, अब याद आ गए..!!
जैसे ही एक और सवेरा हुआ ? सब याद आ गए..!!
अंतरा-४.
भूखा -सूखा अधमरा ये बदन, चिथड़ा-चिथड़ा सा कफ़न,
मैं और देश, जब ख़ड्डे में जा गिरे ? सब याद आ गए..!!
जैसे ही एक और सवेरा हुआ ? सब याद आ गए..!!
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०३-०१-२०१२.
ओह! मार्मिक और हृदयस्पर्शी व्यंग गीत.
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा ,दवे जी.