Tuesday, January 3, 2012

चिथड़ा-चिथड़ा सा कफ़न । (व्यंग गीत ।)





चिथड़ा-चिथड़ा  सा  कफ़न । 
(व्यंग गीत ।)



सड़े - गले   भ्रष्ट   नेता और  मेरे  मुन्ने   की   अम्मा,  
जैसे ही  एक  और  सवेरा  हुआ ? सब  याद  आ  गए..!!


अंतरा-१.


संसद का  गला  फाड़  निकम्मा, घर में  मुन्ने की अम्मा,
जैसे  ही   थैला  राशन  का   पकड़ा,    सब  याद  आ  गए..!!


जैसे  ही  एक   और   सवेरा  हुआ ?  सब   याद  आ  गए..!!


अंतरा-२.


मेरा  कटा  हुआ  पॉकेट, बीबी  का  बिका  हुआ  लॉकेट,  
जैसे  ही  मैंने ,जेब  में  हाथ ड़ाला ? सब याद आ गए..!!


जैसे ही  एक  और  सवेरा  हुआ ? सब  याद  आ  गए..!!


अंतरा-३.


कैसे  समझाऊँ  महँगाई का फंडा, मुन्ने  की अम्मा  को  ?
रात  को  दोनों, सो  गये थे  भूखे, अब  याद  आ  गए..!!


जैसे ही  एक  और  सवेरा  हुआ ? सब  याद  आ  गए..!!


अंतरा-४.


भूखा -सूखा  अधमरा  ये  बदन, चिथड़ा-चिथड़ा  सा  कफ़न,
मैं  और  देश, जब  ख़ड्डे में जा  गिरे ? सब  याद  आ  गए..!!


जैसे  ही   एक   और   सवेरा   हुआ ?   सब  याद  आ   गए..!!


मार्कण्ड दवे । दिनांक-०३-०१-२०१२.

1 comment:

  1. ओह! मार्मिक और हृदयस्पर्शी व्यंग गीत.

    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा ,दवे जी.

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