Sunday, October 16, 2016

बहते अश्क ।

इकतार  बहते  अश्क, अपने आप कभी रोते नहीं,

ग़म-ए-उलफ़त का ज़ुल्म है ये, जो कभी सोते नहीं..!


इकतार = अविरत; 

अश्क = आंसू;  

ग़म-ए-उलफ़त = नाकाम प्यार का दर्द;

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३० जुलाई २०१६.



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