Wednesday, June 15, 2011

सेहरा में खिल उठा है एक फूल..!! Part-1

सेहरा में खिल उठा है एक फूल..!!
Part-1

सौजन्य-गूगल
प्यारे दोस्तों,

ज़िंदगी की ढ़लती शाम में, मानव मन के रूपहरी परदे पर, पूरे जीवनकाल के दौरान किए गए, अच्छे-बुरे कामों का चल चित्र, बार-बार प्रदर्शित होने लगता है ।

इसी अच्छे-बुरे कर्म और जीवन के मीठे-कड़वे अनुभव में, कई बार, एक अनुभव मानवजीवन में घटी हुई, दुखद नाकाम प्रेम-कहानी का भी होता है ।

आज मेरे हाथों में, ऐसे ही एक नाकाम प्रेमी का लिखा हुआ, करीब चालीस साल  पुराना प्रेम पत्र है, जिसे आज मैं सार्वजनिक करने जा रहा हूँ, यही उम्मीद के साथ कि, शायद आपको यह प्रेम पत्र इसलिए अच्छा लगे कि,

१.आप अति संवेदनशील व्यक्ति हैं..!!

२.आप के जीवन में, पिछले दिनों, ऐसी ही एक कहानी लिखी जा चुकी है..!!

३. आप साहित्य प्रेमी हैं और आपके पास एक व्यथित बुज़ुर्ग नाकाम प्रेमी का प्रेम पत्र पढ़ने के लिए, थोड़ी सी फ़ुरसत अभी तक बाकी है..!!

वैसे, मैंने तो इस प्रेम पत्र को,पूर्ण फ़ुरसत में, पूर्ण संवेदना के साथ, पूर्ण ध्यान से पढ़ा और कुछ दिन बाद  मुझे पता चला कि, इस प्रेमपत्र को सार्वजनिक करने के लिए, बड़ी दरियादिली के साथ सम्मति देनेवाले, बुज़ुर्ग दंपति के साथ हाल ही में एक दर्दनाक हादसा हुआ है, जिस की दर्दनाक-कहानी अगली पोस्ट-Part-2 में बयान करूँगा ।

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प्रेम पत्र- सेहरा में खिला है एक फूल..!!

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प्रिया,

मेघधनुष के रंगबीरंगी रंग बिखेरती हुई, मेरे मनाकाश पर  सदैव मंडराती रहती रुपवन्ती और मेरे मन में जबरन, प्यार का अहसास  कराने वाली, ओ...मेरी प्यारी-प्यारी सी प्रिय बदरी  रे..!!   

तुं इतनी निष्ठुर क्यों  है? 

सेहरा की प्यासी रेत की तरह, तेरे प्यार को तरसते हुए, तेरी एक नज़र से, प्रेम की एक बूंद-बूंद पाने की आशा में अनिमेष नज़रों से, तेरी ओर मैं  रात दिन निहारता रहता हूँ..!!

ओ...मेरी प्यारी-प्यारी सी,नाज़ुक प्रिय बदरी  रे..!!

बरसना तेरा धर्म है, स्वभाव है,तो तरसना मेरा धर्म है,स्वभाव है..!!

प्यार के प्यासे इस सेहरा को, अपनी प्यारी सी बदरी से दो बूंद प्रेमामृत की अपेक्षा हमेशा रहती है और इसी उम्मीद ने ही तो मुझे अभी तक ज़िंदा रखा है..!!

क्या ये बात तुं नहीं जानती कि, मेरी अत्यंत शुष्क-अनार्द्र सेहरा की रेत समान जीवन में, अंकुरित हुए विरह-दर्द के नागकनी (cactus) के बदले, प्रेम की सुगंध से भरे फूलों से महकते चमन जैसी तकदीर लिखना, अब तेरे ही  प्यार भरे स्पर्शाधिन है?

प्रिय बदरी, तुझे तो इस विशाल गगन का यह मुक्त विहार रास आ चुका है, मगर जब-जब मेरे मन से उठती उदासी की आंधी, मेरे हृदय की व्याकुलता और विह्वलता बढ़ा देती है,  तब भी क्या तुम्हारे इस  प्यासे सेहरा पर, प्यार के दो बूंद बरसाने का भी तुम्हारा मन नहीं करता?

एक नाज़ुक और नर्म दिल बदरी, पत्थर दिल कैसे हो सकती है..!!  ये तो संभव ही नहीं है, तेरा स्वभाव तो नर्म,मुलायम और किसी भी प्यासे को सिर से पाँव तक भिगो  देने वाला ही हो सकता है, सही कह रहा हूँ ना, प्रिय?

आ  जा  प्रिया..आ..जा, अब मुझे और ना तरसा..!! इस संसार के त्रिविध ताप, तुम्हें और तुम्हारे इस मुलायम रूई जैसे, नर्म अस्तित्व को क्षतविक्षत कर दें, बिखेर दें, इससे पहले ही मेरे सह-भाग्य को तेरे प्रेमांश का वरदान देने की उदारता दिखा जा..!!

अरे..!! मैं भी कैसा पागल हूँ..!! 

दान तो द्वेत से मांगा जाता है, अद्वेत के पास ना कुछ माँगना होता है, ना कुछ देना होता है..!! अब-जब कि मैं और तुम अलग नहीं है, तो मेरी इस बात का समर्थन करना, न करना, अब तेरे हाथ में है, प्रिये..!!

प्रिय,बरस ने दे..बहने दे..इस अविरत स्नेह-धारा और प्रेम-प्रपात को..!! बस तृप्त कर दे, इस सेहरा को..!! रूपांतर कर दे इसे, वायु की लहर के साथ झुमते,गाते,महकते,रंगबिरंगी फूलों से भरे बाग़ में...!!

मेरे मनाकाश पर झूलते रहने के बजाय, बारिश के रूप में, तेरे इस मेघधनुषी, अद्वितिय रूप को फैला दे, इस प्यार के प्यासे सेहरा पर..!!

फिर,चाहे सब लोग भले ही यह कहते फिरे,

"देखो..देखो..सेहरा में भी खिल उठे हैं फूल..!!

सदैव तेरी प्रेम धारा का प्यासा...मैं ।"

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आपको यह प्रेम पत्र कैसा लगा?

इस पत्र में नाज़ुक, मुलायम बदरी के प्रतीक का बहु-मान प्राप्त करने वाली बदरी यानि कि प्रियतमा जीवित नहीं है और सभी संवेदनशील इन्सानों के दिल के भीतर तक, स्पर्श करने वाली भावनाओं को, प्रेम पत्र द्वारा अभिव्यक्त करने वाला प्रियतम? एक दर्दनाक हादसे में...!!

दोस्तों, कहा ना..उनके बारे में अगली पोस्ट,Part-2  में आगे बात करेंगे, मगर कहानी के रूप में..!!

तब तक तो..!!  यह दुखद ख़बर सुनते ही तुरंत, मेरा दिल अत्यंत द्रवित होने के कारण,मेरे दिल में अनायास ही एक गीत स्फूर्त हुआ है, इस गीत को एक ही दिन में, स्वरबद्ध और संगीतबद्ध करके, मेरे ही स्वर में, बड़े ही नम्र भाव से  यहाँ  प्रस्तुत कर रहा हूँ,शायद गीत आप के दिल को  छू  पाये..!! गीत के बोल हैं,

"ज़िंदगी की शाम में उदासियाँ मिटाने आ, ख़्वाबों को मेरे सजा ने आ,तन्हाई मेरी मिटाने तुं आ..!!"




 http://www.youtube.com/user/42mdave?feature=mhee

(नोट-यह पायलट ट्रैक है ।)

मार्कण्ड दवे । दिनांकः-१४-०६-२०११.

5 comments:

  1. निर्मला कपिला said...

    बहुत मार्मिक अभोव्यक्ति है गीत भी बहुत अच्छा है धन्यवाद।

    15/6/11 10:49 AM

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  2. बेहद मार्मिक और संवेदनशील्……………अब तो आगे का इंतज़ार है।

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  3. पत्र अनेक कोमल भावनाओं को लिए हुए ... अंत की पंक्तियाँ मार्मिक हैं ..

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  4. उम्दा गीत के साथ भावुक प्रस्तुति।

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  5. कोमल एहसासों की सुंदर कविता सा पत्र गहरे अंतर्मन तक छू गया ...
    आगे ??

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