Tuesday, May 31, 2011

षोडशी को, वयोवृद्ध प्रेमी का प्रेम पत्र ।

षोडशी को, वयोवृद्ध प्रेमी का प्रेम पत्र ।

प्रिय प्रियतमा,
 
आज उम्र की, अवक्रमित सीढ़ियों पर भूमि गत होने को तरसते,
 
आराम के इस, एक पल में, मेरे हृदय के भाव को छलकने से मैं रोक नहीं पा रहा हूँ..!!
 
मैं नहीं जानता, मेरे दिल से, अविरत छलक रही, भावनाओं की यह बौछार, तेरे दिल के द्वार तक पहुँच भी पाएगी या नहीं..!!
 
मैं जानता हूँ, या तो ये सारी बौछार, रास्ते के मध्य में ही कहीं, सूख कर खुद प्यासी मर जाएगी, या फिर, 

पहले से ही, तेरे किसी दूसरे यार के प्रेम भाव से लबालब, तेरे दिल के द्वार तक आते-आते, आखिरी बूंद के रूप में,  अपना दम तोड़ देगी..!!
 
मेरी प्यारी प्रियतमा,

मैं मानता हूँ, तुम प्यार का परमानंद पाकर भावनाओं के झूले पर बेबाक हिल्लोलती  हुई, एक महान सरिता हो, पर मुझ जैसे आकंठ प्यासे बालू के ढेर की ओर एक नज़र भर देखने की भी तुम्हें फ़ुरसत कहाँ है..!!
 
तुम्हारी दृष्टि तो, उपर आकाश के आभासी इन्द्रधनुष के आर पार, अवनि पर फैलने को बेताब हो रहे, उन रवि किरणों की ताज़ा मंद-मंद ख़ुशबूदार उष्मा की ओर है..!! 
 
मुझ जैसी ढलती हुई निशा के अंधकार से, भला तेरा क्या वास्ता, जिस में अब ना तो पहले जैसी उष्मा है, ना तो बाकी कोई तृष्णा?
 
प्रिये, 

वैसे भी, तुम्हारी सोलह साल की आयु में, कर्तव्य का तक़ाज़ा भी यही कहता है कि, तुम नव-उदयित हो रहे, रवि का ही गर्मजोशी के साथ अभिवादन करो..!!
 
वैसे भी, भावनाओं से लबालब भरी, तुम्हारे जैसी महा सरिता के किनारे पर, किसी भी वक़्त ध्वस्त होने के कगार पर खड़ा, किसी प्रेमी के टूटे हुए ख़्वाब जैसा, जीर्ण-शीर्ण  खंडहर समान मैं,

और तेरे बहुत ही करीब खड़ी हुई, अद्भुत रग-रग सजावटी, मनभावन, महँगी अनेक महलनुमा इमारतें..!!
 
प्रिये, तुम्हारी मनःस्थिति को मैं भली भाँति समझ सकता हूँ ।
 
तेरी रग-रग से उछलती, इन उल्लासमय लहरों के आगे,
 
मेरे अरण्यरूदन के करुण मंद-मंद स्वर, अब अस्तता की ओर बढ़ रहे हैं..!!
 
प्रिये, वैसे भी अब मेरे, अश्रुओं के तपोवन में प्रयाण करने की क्षण बिलकुल नज़दीक आ गई है..!!
 
तेरी चमकती रोशनी के चकाचौंध प्रकाश के सामने, मेरी बुझती हुई ज़िंदगी की आखिरी हिचकी समान, जीर्ण-शीर्ण तेज़ किरन की क्या मजाल?
 
प्रिये, 

अब तो विधाता से रूबरू मिल कर, उसे एक सवाल पूछने की घड़ी पास आ गई है कि, 
 
" हमारे नसीब में, मेरी ढलती उम्र की,अवक्रमित सीढ़ियों पर भूमि गत होने को तरसती, मेरी इस आखिरी पल में ही, हमारा मिलन उसने क्यों लिखा?"
 
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प्यारे दोस्तों,
 
आप को ये जान कर ताज्जुब होगा कि, इस षोडशी कन्या का नाम है, 

हमारी सभी की लाडली,"आशा ।"

और वयोवृद्ध प्रेमी का नाम है "विषाद ।"

हालाँकि, मुझे नहीं पता, `विषाद` को कभी वृद्धावस्था आती भी होगी या नहीं?
 
पर हाँ, षोडशी कन्या `आशा` से, हमेशा सभी प्यार करते हैं, यह बात निर्विवाद है ।

मार्कण्ड दवे । दिनांकः- ३१-०५-२०११.

8 comments:

  1. गज़ब का प्रेम पत्र है।

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  2. हा हा दादा आप भी गजब का प्रेम पत्र लाये हैं ...

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  3. subhaanallah- what a love letter

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  4. जी हाँ, आशा ने सब को फांसा.फिर क्या बच्चा क्या जवान और क्या बुड्ढा.
    'विषाद' की जगह यदि 'मोह' कहें तो ज्यादा सही सा लगता है.'मोह' बुड्ढा भी हो जाये पर आशा का दीवाना बना रहता है जी.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका स्वागत है.

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