Friday, December 9, 2011

आँख को नम कर लेना । (गीत)




॥ श्रीद्वारिकाधीशजी नमो नमः ॥
॥ श्रीरणछोडरायजी  नमो नमः ॥

आँख  को  नम  कर  लेना । (गीत) 




प्यारे दोस्तों,

सानंद यह विदित हो कि, गुजरात के वडोदरा जिला  के (नर्मदा तट स्थित) पवित्र यात्राधाम `चांदोद` में, दिनांक-०६-१२-२०११. के, श्रीगीता जयंति के शुभ पर्व  पर, भगवान श्रीरणछोडरायजी के मंदिर का कार्य इश्वर कृपा से संपन्न हुआ । यहाँ पर,  पावन-भाविक भक्तगण के रहने के लिए, ए.सी. रूम्स और भोजन की भी सुख-सुविधा उपलब्ध है ।

इस  शुभ  पर्व  पर, मंदिर  में  नव प्रस्थापित  प्रतिमा  के सामने  जब  मैं   बैठा  था  तब, एक प्रार्थना  गीत, स्वरांकन  के  साथ  सहसा  मेरे  कंठ  से  फूट  पड़ा, जो  उसी वक़्त किसी  ने रिकार्ड कर लिया था, आज वही  गीत,  मैं  यहाँ इस आशा  के साथ पेश  कर  रहा   हूँ  कि, शायद  इसे सुन कर, आपकी  भी  आँख  नम  
हो जाए..!!

http://www.youtube.com/watch?v=L203zhmIq24



आँख  को  नम  कर  लेना । (गीत)


गर  सांस  मेरी  रूक जाए, आँख  को  नम  तुम  कर  लेना ।

जुदाई   की   तानों   को,   तार   सुरों   में   तुम   छेड़  देना ।


( तार  =  ऊँचे  सुर )  



अंतरा-१.

चाहे     अरथी     उठने    तक,     मातम    मेरा   मना  लेना ।

मेरे   शव   पर   ताज़ा   फूल,  कुछ   तुलसी  दल  चढ़ा  देना ।

जुदाई     की   तानों   को,  तार    सुरों   में   तुम   छेड़  देना ।



अंतरा-२.


दिल  की  नफ़रत  सारी,  इस   चिता  के  संग  जला  देना ।

आख़री  सलाम  कर   के, दो  मिनट अबैन  तुम  रह  लेना ।

जुदाई   की   तानों    को,  तार    सुरों   में   तुम   छेड़  देना ।

( अबैन = मौन, )



अंतरा-३.


सारे     रोते     बिलखते    को,   धीरज    तुम   बँधा   देना ।

मृत्यु   से    अनजान   मेरे,  बच्चों  को  तुम   खिला  लेना ।

जुदाई   की   तानों    को,  तार    सुरों  में   तुम   छेड़  देना ।


( राग = प्रेम , खिला लेना = खेलना,)


अंतरा-४.


अनरस  जो  सताये  तो,  कटु  मन  को   ज़रा   मना  लेना ।

कुछ  कहा-सुना हो अनयस, तुम  दिल से  उसे  भुला  देना ।

जुदाई    की   तानों    को,  तार    सुरों   में    तुम   छेड़  देना ।


(अनरस = रंजिश , अनयस = बुरा,)


अंतरा-५.


बात  कर   दे  कोई  अनसठ, तुम सिफ़तसे उसे मोड़ देना ।

अपना  तुम्हें   माना    है,  मेरे    पीछे    सब   सहेज  लेना ।

जुदाई   की   तानों   को,  तार   सुरों  में    तुम   छेड़  देना ।


(अनसठ = नीच, घटिया, सिफ़त = बखूबी, सहेजना = सँभालना)


मार्कण्ड दवे । दिनांक-०६-१२-२०११.

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