Monday, March 28, 2011

चड्डी सँभाल तोरी,नेताजी ।

चड्डी सँभाल तोरी,नेताजी ।
 (courtesy-Google images)

" इज़्ज़त  का  फालुदा  तेरा, जगह जगह  बिकता है ।
  लिज्ज़त लेकर, ईर्षालु देख, भीतर भीतर जलता है ।"

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प्यारे दोस्तों,

आजकल हमें तो बहुत ही मज़ा आ रहा है ..!!

विकिलीक्स का `चड्डी खींच, लिकेज कर अभियान`,  रोज़ नये-नये लोगों की चड्डी खींच रहा है और सभी, सम्माननीय महानुभव जो की आजतक दूसरों की `चड्डी की खींचतान` के अद्भुत नज़ारे का लुत्फ़ बड़े चाव से उठा रहे थे, वही लोग अब अपनी-अपनी चड्डी सँभालने में जुट गये हैं । ये तो वही बात हुई की..!!

" न खलु अक्षिदुःखितः अभिमुखे दीपशिखां सहते । "

अर्थात - नज़र का बीमार आदमी दीपशिखाकी रौशनी को सहन नहीं कर सकता ।   

`विक्रमोर्वशीयमम्` - महाकवि कालिदास ।

अब आप के मन में सवाल उठने वाला है की,"विकिलीक्स द्वारा जितने  नेताओं की चड्डी खींची गई है, उनको आइन्दा अपनी चड्डी सँभालने के बारे में क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए?"


इसी संदर्भ में, मुझे बचपन का, हमारे गाँव का, एक क़िस्सा याद आ रहा है । मैं  करीब ६-७ साल का था । हमारे गाँव में एक विवाहित महिला का पति और सास-ससुर, उसे  दहेज़ के लिए हर क्षण प्रताड़ित करते रहते थे । विवाहिता को फटीचर साडीमें देखकर,उसी  गाँव में, खेतीबाडी करते, विवाहित महिला के पिता और भाई का दिल बहुत दुखता था । पर क्या करें?


एक बार त्योहार के मौके पर,वह महिला के पिता और भाई ने  उपहार के रुप में बेटी-बहन को नयी महँगी साड़ी दिलाई । अब वह विवाहिता की सास ने नयी अच्छी सी साड़ी देखकर, ज़बरदस्ती बहु से  साड़ी लेकर झट से, ये नयी महँगी साड़ी, पास ही में ब्याही अपनी बेटी को  भेंट कर दी । अपने पिता और भाई का दिया हुआ उपहार, अपनी ननन्द को देने से, फटेहाल साड़ी में लिपटी हुई, विवाहिता के मन को बहुत ग़हरी ठेस पहुँची ।


ससुर पक्ष को सबक सीखाने के लिए, वह ग़ुस्साई बहु ने बड़ा अजीब सा तरीक़ा अपनाया । फिल्म `राजा बाबू`में, विलन कॉमेडियन शक्ति कपूर ने पहनी थीं वैसी ही,अपने पति की लंबी, धूटनों तक पहुँचती  नाडा लटकी चड्डी (कच्छा) और पति का लंबा शर्ट पहनकर गाँव के दूसरे छोर पर, नदी से  पानी भरने के लिए, सिर पर घड़ा उठाए विवाहिता, सरे बाज़ार, गाँव की भीड़भाड़ भरी गलीओं के बीच होते हुए चल पड़ी ।


गाँव की बहु-बेटी की इज़्ज़त तार-तार करनेवाला, आधातजनक दृश्य देखकर सारा गाँव मारे शर्म के पानी-पानी हो गया । मामला गाँव की बहु-बेटी के संबंधित था, अतः  ये  मामला गाँव के प्रतिष्ठित पंच के पास पहुंचा, सारे गाँव के सामने पंचोने, इस विवाहिता की सासरीवालों को बहुत जमकर फटकार लगाई और आगे से अपनी बहु को बेटी मानकर, बहु को अच्छे से रखने का आदेश दिया । बहु की साड़ी पर हक़ जमाने वाले सासरीवालों की खुद की चड्डी बहु ने सरे आम खींची । बाद में बहु के साथ,समय रहते, सब कुछ अच्छा हो गया ।


पता नहीं..!! विकिलीक्सवाले जूलियन असांजे दुनियाभर के महान नेताओं की चड्डी खींच कर, उन चड्डीओं का क्या करना चाहते हैं ? हमें तो लगता है, विकिलीक्स के सारे दस्तावेज़ लिक हो जाने के बाद,जूलियन असांजे,  सारे महान, प्रातःस्मरणीय, आदरणीय इंटरनेशनल नेताओं की, ईकठ्ठी की गई बहुमूल्य चड्डीयों का बड़ा...सा  शॉ-रूम शुरू करेंगे ।


आजकल जूलियन असांजे ने, रोज़ `एक तीर से  एक साथ कई नेताओं की चड्डी खींचाई अभियान`` के तहत,  आज फिर से भाजपा के नेता श्रीअरूण जेटली की चड्डी खींची है । अब, हम क्या करें?


वैसे तो `चड्डी खींचतान अभियान` का अर्थ होता है,`किसी की इज़्ज़त का फालुदा करना, किसी का अपमान करना, वग़ैरह, वग़ैरह..!!


सब से बड़ा सवाल यह है की, विकिलीक्स क्या सब के साथ मज़ाक कर रहा है?


लेकिन, मज़ाक में तो एक हद होती है और इस `चड्डी खींचाई अभियान` बेहद है ?


विकिलीक्स आयें दिन जो भी लिक कर रहा है, वह बहुत बदबूदार है..!! लिक हो रहे सारे दस्तावेज़, किसी की मज़ाक उड़ाने के हेतु सार्वजनिक नहीं हो रहे, मगर बड़े लोग की, निजी सोच और सार्वजनिक सोच में, सचमुच  उत्तर-दक्षिण  दिशा का अंतर होने के साथ ही, ये सारे नेताओं की सोच कितनी घटिया और दोगली होती है, यही बात, वह उजागर कर रहे हैं ।


हर एक दस्तावेज़ के सार्वजनिक होने के साथ, संबंधित सब की चड्डी खींच के, जूलियन असांजे  अपने नये शॉ-रूम के लिए मानों,  अमूल्य चड्डीओं का, `ऑक्सन-नीलामी` करने के लिए नेताओं की चड्डीओं को जमा कर रहे हैं और जिसकी चड्डी खींची गई हो, वह सार्वजनिक तौर पर सरे-आम नंगा दिखने लगता है ।


दोस्तों, आप को तो पता ही है की, सन-१९७० तक दूर-दराज़ के देहाती इलाक़ो में रेडियो, पुरे गाँव में  शायद ही, किसी एक-दो घर में सुनने को मिलता था । गाँववालों मे से, टी.वी. तो ख़्वाब में भी शायद ही किसी ने देखा हो । ऐसी स्थिति में गाँव की सारी महिलाएँ किसी एक महिला के  घर के बरामदे में इकट्ठा होकर, हर रोज़ दोपहर घर के कार्यावकाश के समय, समाज के बड़े-बड़े सूरमाओं के घर-कुटुम्ब की पोल खोलने,`चड्डी खींचाई परिषद में` प्रवृत्त हो जाती थीं । इस परिषद में `चड्डी खींचाई अभियान` द्वारा सारे गाँव के  अच्छे बुरे समाचार में अपनी ओर से, नमक, मिर्च, मसालों का बढ़िया तड़का लगाकर, समाचार को विकृत कर के, `सर्व स्वीकृत` होने लायक टेस्टी बनाकर , कहाँ से कहाँ तक कर्णोपकर्ण पहुंचाने की क्षमता रखती थीं । हाँ, ये बात ओर है की महिला मंडल के संनिष्ठ प्रयत्न के कारण, कई बार सच्चे समाचार का पूरा स्वरूप ही बदल जाता था ।


ऐसे समाचार का स्रोत कुछ भी हो सकता था, जैसे की `बरामदा महिला मंडल` में, उपस्थित-अनुपस्थिति सास-बहु, माँ-बेटी,ननन्द-भाभी और कई बार पांच-दस पैसे की लालच में हमारे जैसे छोटे-बड़े बच्चें भी, इस महिला परिषद के, ख़बरी बनने को तैयार हो जाते थे ।


हालांकि, शास्त्रोंमें अपने घर की बातें सार्वजनिक करने के बारे में कहा गया है कि,


"अपृष्टो नैव कथयेद गृहकृत्यं तु कं प्रति।
बहवार्थाल्पाक्षरं कुर्यात्‌ सल्लापं कार्यसाधकम्‌ ॥ "


अर्थात - कई लोगों को अपने घर की निजी बातें जाहिर करने की खराब आदत होती है । अपने घर या कार्य संबंधी बातों को किसी के पूछने पर ही जाहिर करना चाहिए । हमेशा अर्थ पूर्ण, संक्षिप्त और कार्य सिद्ध करानेवाले  उत्तर देने की आदत डालनी चाहिए ।


चड्डी खींचाई अभियान और हम..!!


यह सन-१९५८ की बात है, मैं उस वक़्त बहुत छोटा सा था इसलिए दोपहर की बरामदा-महिला परिषद में मुझे एक एडवान्टेज मिलता था,`इतना छोटा बच्चा,महिलाओं की निजी बातों को क्या समझेंगा?` ऐसा मानकर मेरी उपस्थिति का कोई महिला कभी विरोध नहीं करती थीं ।


ये सभी महिलाएँ, जब कभी किसी की निजी सेक्सी बातें करनी हो तो, इशारे से अथवा तो प्रत्येक शब्द के आगे `अस्म-कस्म-मस्म-चस्म` जैसा कुछ जोड़कर, कोड वर्ड की भाषा का प्रयोग करती थी और बाद में पता नहीं, सारी महिला परिषद ज़ोर-ज़ोर से ठहाका मार कर हँसती थीं। (ऐसे में मुझे बहुत बुरा लगता था- मेरे जैसे छोटे बच्चे के साथ इतना बड़ा चिटींग-ख़ुफ़ियापन?)


बरामदा महिला परिषद में शृंगार रस और साहस से भरी रसवंत बातचीत का दौर शुरु होते ही, बात लंबी चलने की आशंका के कारण कई महिलाएं, पहले ही बाथरुम हो आती थीं, जिससे बात में रसक्षति का ख़तरा टल जाए ।


मैं भी इधर-उधर देखकर,मानो कुछ न समझने का ढोंग रचा कर, किसी कुशल अभिनेता की भाँति असरदार अभिनय कर के,  मेरे कान को ओर तेज़ कर लेता था । वैसे तो उस वक़्त मुझे ठीक से चड्डी पहनना भी आता नहीं था । शायद इसी वजह से यह निंदा-रसिक महिलाओं की कुछ-कुछ बातें मेरी समझ सीमा के पार होती थीं ।


हाँ, अक्सर ऐसा होता था उन महिलाओं की बातों के बीच अगर कोई बाल कथा जैसा प्रसंग आ जाए, तब मैं उसे ध्यान से सुनता, बार बार रटता और फिर उसमें नमक, मिर्च, मसाला डालकर अच्छा सा तड़का लगाकर, इस कथा को और रोचक बनाकर हमारे बच्चों की महोल्ला परिषद में उसे पेश करके, दूसरे बच्चों से ज्यादा, विद्वान और ज्ञानी होने का दंभ मैं रचाता था ।(शायद, आज भी मैं वैसा ही हूँ..!!)


अमेरिकन मेजर लिग बेसबॉल के स्पेशयल आसिस्टन्ट जनरल मैनेजर मिस्टर-रॉबर्ट स्कॅफर का कहना है की," आपकी अंगत परेशानियाँ किसी ओर को मत सुनाईए क्योंकि सुनने वालों में से ज्यादातर व्यक्तिओं को इसकी कोई दरकार नहीं होती और बाकी व्यक्ति इसे सुनकर मन ही मन खुश होगें ।"


मिस्टर रॉबर्ट की यह बात सुनकर, आप सबको भी हैरानी होती होगी की, अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर तक पहुँच कर भी, विकिलीक्स जिन महानुभवों की चड्डी खींच रहा है, उनको क्या इतना भी ज्ञान नहीं है की अपने मन का भेद किसे बताना चाहिए और किसे नहीं ? ये सारे सम्माननीय नेता ऐसी बेवकूफी कैसे कर सकते हैं..!!


मेरे खयाल से,पंडित नहेरुजी के समय से, किसी गोरी चमड़ी को देखकर, उनसे अत्यंत प्रभावित होने की, या फिर अपने देश या पक्ष की थोड़ी बहुत जानकारी की लॉलीपोप अमेरिकन राजदूतोंको चटा कर, अमेरिका से अपने कुछ निजी स्वार्थ साधने की चेष्टा के कारण ही, ऐसी बेवकूफी हो सकती है । फिर ख़ुदग़र्ज़ नेताओं को ये थोड़े ही पता था की, जूलियन असांजे, शाम सवेरे, हाथ धो कर, उनकी चड्डी के पीछे पड़ने वाला है?


खैर, अब  जो हो रहा है, उसे  कोई रोक तो नहीं सकता । मगर ऐसे नंगेपन की ये सारे नेता लोग आदत तो डाल ही सकते हैं ।


हिन्दी फिल्म,`वक़्त`में  महामंडलेश्वर श्री..श्री..श्री..पूज्य १००८ संत शिरोमणि अभिनेता श्रीराजकुमारजी (जा..नी..ई..ई,) ने सही फरमाया है, "जो खुद शीशे के घर में रहते हो, वह किसी दूसरे के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते जा..नी..ई..ई..!!"


अ..हा..हा..हा..!! कल्पना मात्र से, मैं रोमांचित हो उठता हूँ । ज़रा आप भी कल्पना कीजिए, विकिलीक्स के द्वारा सभी देशों के मांधाताओं की  सारी चड्डीयां  खींच ली गई है  और अब मिस्टर जूलियन असांजे ने, अपने चड्डीओं के शॉ-रुम के बाहर, सारे नेताओं से, ईकठ्ठी की  गई  तमाम चड्डीओं  पर, उन सब नेताओं के नाम का टॅग लगाकर, `सार्वजनिक चड्डी ऑक्सन`(नीलामी) आयोजित किया है ।


 अ..हा..हा..हा..!! हम जैसे लोगों के लिए `सार्वजनिक चड्डी नीलामी` का,  ये अद्भुत नज़ारा कितना`रोचक` होगा और जिन महानुभवों की चड्डीओं की नीलामी हो रही है, उन सब नेताओं के लिए ये नज़ारा कैसा `रेचक` रहेगा..!!


हालांकि, `चड्डी खींचाई अभियान` का सच्चा लुत्फ़ तो सारे प्रिंट और न्यूज़ टीवी, मिडीयावाले उठा रहे हैं? विकिलीक्सके खुलासेमें, जो महानुभव पकड़े जाते हैं, उनकी बॉडी लेन्ग्वेझ से लेकर उनकी सात पुश्तों तक की जानकारी लेने-देने में सब संवाददाता एक साथ जुट जाते हैं..!! चलो, उनका  पेट भरने की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं चड्डी-दाता नेताओं पर ही तो है..!!


वैसे, पेट भरने से याद आया, हिन्दी फिल्मोमें शक्तिकपूर से पहले, आग़ा, धुमाल, मुकरी, केस्टॉमुखर्जी, महमूद, असरानी जैसे कई कॉमेडियन्स कई फिल्मों में, चड्डी पहनकर ही, दो पैसे कमाकर अपना पेट भरते थे..!!

इसी तरह, स्टेन्डअप कॉमेडी करके अपना पेट पालनेवाले कॉमेडियन राजु श्रीवात्सवजी, जब `बीगबोस सीज़न-३` में हिस्सा ले रहे थें तब, अपनी शरारती कॉमेडी के ज़रिए कई बड़े-बड़े सूरमाओं की चड्डी खींचनेवाले, राजु की खुद की चड्डी, इसी शॉ की चूलबूली प्रतियोगी कुमारी शमीता शेट्टी, अदिती और तनाझ बखत्यारने  मिलकर खींची थीं,जिस दृश्य को भारत सरकार के ईन्फरमेशन और ब्रॉडकास्टींग मिनिस्टरीने, पांच दिन की शोर्ट नोटिस भेजकर,  राजु की चड्डी खींचाई का  भद्दे  मजाकवाला दृश्य एडिट करवाया था ।


ऐसा ही एक किस्सा,`U.K. Big Brother` की आठवीं सिरीज़ के दौरान हुआ था । नोर्थ लंदन  के सुप्रसिद्ध मॉडल ,` Zachary Sami "Ziggy" Lichman` (जन्म- ५ फरवरी १९८१.) प्रतिस्पर्धि, बिग ब्रधर शॉ शुरु होने के बाद तीन दिन के पश्चात शॉ में दाखिल हुए थे और इस शॉ की कुछ नटखट कुँवारी (??) कन्या प्रतियोगीने मिलकर` झिग्गीभाई` की चड्डी सचमुच खींच ली थीं । इसका वीडियो आज भी ,` YOU TUBE` पर उपलब्ध है । इस शॉ के विजेता`,`Brian Belo` हुए थे ।


चाहे `मुन्नाभाई MBBS` हो या फिर`थ्री ईडियट`फिल्म के कॉलेज का रेगिंग दृश्य? ये चड्डी खींचाई का सब्जेक्ट, हर एक फिल्म डायरेक्टर के मन को, इतना भा गया है की ये सभी डायरेक्टर को हम कह सकते हैं,`जहाँपनाह तु सी ग्रेट हो..!!`


फिल्म,`थ्री ईडियट्स`में विकिलीक्स की पेटर्न पर, ऐसे ही भाषण के दस्तावेजमें `चमत्कार` शब्द की जगह `बलात्कार` शब्द बदली करके, ज़ुल्मी मेन्टोर सहस्त्रबुद्धे (बोमन ईरानी) की चड्डी सब स्टूडन्ट्सनें बराबर खींची है ।


वैसे यह समाचार एकदम ताज़ा है की, अभी-अभी गुजरात के सी.एम.श्रीनरेन्द्र मोदीजीने, अमेरिकन कॉन्स्यूलेट जनरल मि.माईकल ऑवन की चड्डी कुछ ऐसे खींच ली थी की, अब माइकल ऑवन की चड्डी आजकल कहाँ है ? उसका ऑक्सन होगा की नहीं? ये बात कोई नहीं जानता ।

दोस्तों, अंतिम समाचार प्राप्त होने तक, आधुनिक शॉरुम में, पर्याप्त चड्डी ईकठ्ठी हो जाने पर,थोड़े ही दिनों पहले, जूलियन असांजे ने, महान नेताओं की `चड्डीओं का ऑक्सन`(नीलामी) आयोजित किया था ।


अभी-अभी प्राप्त समाचार मुताबिक, जूलियन असांजे आयोजित, विश्व भर के नेताओं की `चड्डीओं के ऑक्सन`में असांजे को बहुत भारी मुनाफ़ा प्राप्त हुआ है ।


चड्डीओं की नीलामी के दौरान एक अनहोनी भी हो गई थीं ।


ऑक्सन-हॉल में, हॉल के ग़रीब चपरासी  की  फटीं चड्डी,  ग़लती से नीलामीमें  शामिल हो गई थी, जिसकी अच्छी-ख़ासी बोली लगने के बावजूद, वह ग़रीब चपरासीने जूलियन असांजे को, ये कहकर अपनी चड्डी बेचने से,  इनकार कर दिया की,


" हमारी चड्डी भले ही फटीं हुई है, मगर इसे मैंने अपने पसीने की कमाई से खरीदी है । ज्यादा फट जायेगी, तब  मेरी पत्नी इसे काट-छांट कर, मेरे छोटे बच्चे की चड्डी बना लेगी और मेरे बच्चे की चड्डी भी फट जायेगी तब, उसको घर के पोंछे के तौर पर इस्तेमाल करेगी । असांजे साहब, हम ग़रीब ज़रूर हैं पर, अपने फटे कपड़े और  बूढ़े  माता-पिता से, आखिरी सांस तक, न तो कभी शरमातें हैं, ना ही कभी उनको, किसी ओर के हवाले करते हैं ।"


हे  कुर्सी मैया, ऑक्सन (नीलामी) हॉल के यह ग़रीब चपरासी से, हमारे  सारे महान, प्रातःस्मरणीय, आदरणीय  नेता  क्या  कुछ शिक्षा  ग्रहण  करेंगे..!!

"मगर..हाय.. वो दिन कहाँ की मियाँ के पाँव में जुती..!!"

फिलहाल  तो, जूलियन असांजे  बड़ी  उलझनमें हैं  की,

"क्या ये यही देश है जहाँ, ताक़तवर,अमीर,सत्ताधारी नेता लोग भ्रष्टाचार के पैसों से खरीदी हुई, परदेश की अत्यंत महँगी चड्डी उतर जाने पर भी, अपने नंगेपन पर गर्व महसूस करते हैं और इससे बिलकुल विपरीत, इसी देशमें एक ग़रीब चपरासी अपने पसीने की कमाई से खरीदे  हुए,  फटें कपडों को, बूढ़े माता-पिता जितना ही प्यार करके, उसकी नीलामी करने से परहेज़ करता है? "


मेरे प्यारे, मिस्टर जूलियन असांजे साहब, यही तो है, मेरा महान भारत ।


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"ANY COMMENT?"


मार्कण्ड दवे । दिनांकः २७ -०३-२०११.

14 comments:

  1. मनोज कुमार ने कहा…

    इस लंबी चड्ढी में इतनी रोचकता है कि पूरा पढकर ही दम लिया। कई नई जानकारियां मिली और व्यंग्य तीखा रहा।

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  2. देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

    बड़ी लम्बी चढ्ढी है..पूरी नहीं पढ़ पाया।

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  3. Rahul Singh ने कहा…

    सब कुछ मजाक ही बनता दिखाई दे रहा है, धन्‍य है हमारा हास्‍य बोध.

    २८ मार्च २०११ ७:३६ पूर्वाह्न

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  4. मलखान ने कहा…

    ha ha ha ha
    nice


    समय हो तो मेरा ब्लॉग भी देखें
    महिलाओं के बारे में कुछ और ‘महान’ कथन

    २८ मार्च २०११ ११:५७ पूर्वाह्न

    ReplyDelete
  5. हद्द कर दी आपने तो !!

    कहाँ से सीखी आपने इतनी अच्छी हिन्दी ?

    बडा मझा आया !

    धन्यवाद...

    ..उ.म..

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  6. Kajal Kumar ने कहा…

    अथ कथा चड्डी लीकस
    २८ मार्च २०११ ३:२३ अपराह्न

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  7. E-Guru Maya ने कहा…

    " हमारी चड्डी भले ही फटीं हुई है, मगर इसे मैंने अपने पसीने की कमाई से खरीदी है । ज्यादा फट जायेगी, तब मेरी पत्नी इसे काट-छांट कर, मेरे छोटे बच्चे की चड्डी बना लेगी और मेरे बच्चे की चड्डी भी फट जायेगी तब, उसको घर के पोंछे के तौर पर इस्तेमाल करेगी । असांजे साहब, हम ग़रीब ज़रूर हैं पर, अपने फटे कपड़े और बूढ़े माता-पिता से, आखिरी सांस तक, न तो कभी शरमातें हैं, ना ही कभी उनको, किसी ओर के हवाले करते हैं ।"

    ha ha ha ..... bahut badhiya

    २८ मार्च २०११ ३:५३ अपराह्न

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  8. निरंजन मिश्र (अनाम) ने कहा…

    अरे वाह आपने तो सबकी चड्डी उतार दी .
    २८ मार्च २०११ ५:४४ अपराह्न

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  9. निरंजन मिश्र (अनाम) ने कहा…

    जहाँपनाह तु सी सचमुच ग्रेट हो..!!`
    २८ मार्च २०११ ५:४५ अपराह्न

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  10. रामपुरी सम्राट श्री राम लाल ने कहा…

    धन्यवाद , इस मंच पर पाठको को इतने अच्छे हास्य से रु बु रु करवाने के लिए ..................

    लेख प्रकाशित करते समय लेबल मे अपना नाम अवश्य लिखे
    २८ मार्च २०११ ५:५१ अपराह्न

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  11. गजेन्द्र सिंह ने कहा…

    बढ़िया व्यंग ...
    किसी की चड्डी तो छोड़ देते आपने तो सबकी उतार दी
    २८ मार्च २०११ ५:५७ अपराह्न

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  12. बहुत बढ़िया... चड्ढीनामा ... बधाई

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  13. मार्क भाई आपके आलेख की विषय वस्तु गम्भीर है भले ही पहली नजर में यह मात्र हास्य लग रहा हो पर यह अत्यंत गहन व्यंग है। मैं आपके व्यंग लेखन का कायल हो गया।
    एक निवेदन है कि यदि अनुमति हो तो आपके पत्रा की कड़ी भड़ास पर बद्ध कर दूं जैसे अन्य मित्रों की कड़ियां लगी हैं.कृपया bharhaas के स्थान पर भड़ास लिखें ताकि पता चले कि ये मंच हिंदी का है।
    सप्रेम
    जय जय भड़ास
    डा.रूपेश श्रीवास्तव

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  14. 1 टिप्पणियाँ:

    डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

    मार्कंड भाई कमाल की चड्ढ्यात्मकतापूर्ण लिखाई है,एक बात तो है कि यदि भविष्य में कोई शोधकर्ता इस अत्यंत गहन-गम्भीर-गूढ़ विषय पर शोध करना चाहेगा तो इस आलेख का संदर्भ अवश्य लेगा।

    मैं इस आलेख के दायरे से बाहर अनुसूचित करा जाउंगा क्योंकि मैं लंगोट पहनता हूं भड़ास के दूसरे संचालक वो भी पहनते हैं या नहीं ये नहीं पता;)

    वैसे भड़ासी तो जन्मजात नंगे हैं और अभी भी नंगई करने में गुरेज़ नहीं करते जब मुंबई में भैंस का दूध ४३ रुपए/लीटर होने वाला है और जनता प्रधानमंत्री के साथ क्रिकेट देखने में तल्लीन है।

    लगे रहिये...

    जय जय भड़ास

    March 30, 2011 9:18 PM

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