Saturday, September 8, 2012

कमबख़्त मुहब्बत । (गीत)

(सौजन्य-गूगल।)



कमबख़्त  मुहब्बत । (गीत)




कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!

और  एक  वो  है, जो  दिल से   कोई   काम   नहीं   लेती..!


अंतरा-१.


क्या-क्या  नहीं  करते  दिलबर, सनम को  लुभाने  को..!

एक वो  है जो,  हाले दिल  तक खुले आम  नहीं  करती..!


कमबख़्त  मुहब्बत  जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!


(खुले आम= अभिव्यक्त)  


अंतरा-२.


शरमा  के   यूँ   नज़रें   झुकाना, प्यार  नहीं   तो  क्या  है ?

फिर  वो  तो, नज़रों   को   ज़रा  भी   आराम   नहीं   देती..!

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं   लेती..!



अंतरा-३.


दोस्तों, कोई   करें  भी तो  क्या  करे,  कैसे   माँगे   दिल..!

करारी    शिकस्त  पर  तंगदिल, कोई  इनाम  नहीं  देती ।

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ    होने  का   नाम  नहीं  लेती..!


(तंगदिल= कंजूस)


अंतरा-४.


थका-थका सा  प्यार, बुझा-बुझा सा  इक़रार  लगता  है..!

अब  तो, सलाम के   बदले  भी, वो  सलाम  नहीं  करती..!

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!



(बुझा-बुझा  सा= रूखा)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः०८-०९-२०१२.

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